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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्य : पंचम खण्ड
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जामताह
देमप्रभसरि (१२४८ ई०)--यह देवेन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने ताजिक ज्योतिष पर त्रलोक्य प्रकाश नामक ग्रन्थ की रचना की है। इसका रचनाकाल सं० १३०५ (१२४८ ई०) है। इसमें मुस्लिम लग्नशास्त्र का वणन है। ज्योतिष-योगों से शुभाशुभ फल बताये हैं।
इनका दूसरा ग्रन्थ मेघशाला है। यह निमित्त सम्बन्धी ग्रन्थ है। इसका रचनाकाल भी सं० १३०५ के लगभग है। .
नरचन्द्र उपाध्याय (१२६६ ई०)- यह कासहृद्गच्छ के उद्योतनसूरि के शिष्य सिंहसूरि के शिष्य थे। देवानन्दसूरि इनके विद्यागुरु थे । ज्योतिष पर इनके अनेक ग्रन्थ और उन पर टीकाएँ लिखी मिलती हैं
१. जन्मसमुद्र--(रचनाकाल सं० १३२३=१२६६ ई०) यह जातक सम्बन्धी ग्रन्थ है । इसमें ८ 'कल्लोल' हैं।
२. बेड़ाजातकवृत्ति-'जन्मसमुद्र' पर स्वरचित टीका है। रचना समय सं० १३२४ माघ शुक्ल अष्टमी रविवार दिया है।
३. प्रश्नशतक-(रचनाकाल सं० १३२४) इसमें लगभग सौ प्रश्नों का समाधान किया गया है। ४. प्रश्नशतक अवचरि-उपर्युक्त पर स्वोपज्ञ टीका है।
५. ज्ञानचविशिका-(रचनाकाल सं० १३२५) इस छोटी कृति में लग्नानयन, पुत्रपुत्री-ज्ञान, जयपृच्छा आदि विषय हैं।
६. ज्ञानचतुविशिका-उपर्युक्त पर टीका है। ७. ज्ञानदीपिका-(रचना सं० १३२५) ८. लग्नविचार-(रचना सं० १३२५) ९. ज्योतिषप्रकाश-(रचना सं० १३२५) फलित ज्योतिष सम्बन्धी । १०. चतुर्विशिकोद्धार-(रचना सं० १३२५) प्रश्न-लग्न सम्बन्धी। ११. चतुर्विशिकोद्धार-अवचूरि-उपयुक्त पर स्वोपज्ञ भवचूरि।
ठक्कूर फेरू (१३वीं-१४वीं शती) यह राजस्थान के कन्नाणा ग्राम के श्वेताम्बर श्रावक श्रीमालवंशीय चंद्र के पुत्र थे। इनको दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने अपना कोषाधिकारी (खजांची) नियुक्त किया था। इनके ८ ग्रन्थ मिलते हैं । 'युगप्रधानचतुष्पदिका' (रचना सं० १३४७=१२६० ई.) अपभ्रंशमिश्रित लोकभाषा में है। शेष कृतियाँ प्राकृत में हैं । इनकी गणित पर गणितसारकौमुदी और ज्योतिष पर ज्योतिस्सार ग्रन्थ हैं।
१. गणितसारकौमुदी-यह महावीराचार्य के गणितसारसंग्रह और भास्कराचार्य के लीलावती पर आधारित है।
२. ज्योतिस्सार (रचना सं० १३७२=१३१५ ई०) इसमें चार 'द्वार' हैं-दिन-शुद्धिद्वार, व्यवहारद्वार, गणितद्वार, लग्नद्वार । इसमें पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों का उल्लेख है।
अहंदास (१३०० ई.)-यह 'अट्ठकवि' के नाम से प्रसिद्ध है। यह कर्नाटक निवासी थे। इन्होंने कन्नड़ में ज्योतिष पर अट्ठमत नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है। इसमें वर्षा के चिह्न, आकस्मिक लक्षण, शकुन, वायुचक्र, गृहप्रवेश, भूकम्प आदि विषयों का निरूपण है । इनका काल १३०० ई० के लगभग है।
भास्कर कवि ने शाके १४वीं शती में इसका तेलुगु में अनुवाद किया था।
महेन्द्रसूरि (१३७० ई०)-यह आचार्य मदनसूरि के शिष्य थे। यह दिल्ली के फिरोजशाह तुगलक के सभापण्डित थे। 'यन्त्रराज' इनकी ग्रहगणित पर अच्छी कृति है। रचनाकाल शक सं० १२९२ (१३७० ई.) है। इसमें विभिन्न यन्त्रों की सहायता से सभी ग्रहों का साधन बताया है।
इनके ही शिष्य मलयेन्दुसूरि ने इस पर टीका लिखी है।
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