________________
१२
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
-किसी प्रकार की झूठी गवाही नहीं देना। -चोरी नहीं करना। - वर्ष में ग्यारह माह तक ब्रह्मचारी रहना । -पच्चीस हजार रुपये नकद, चार सौ तोला सोना, चार मकान और दो
हजार तोला चाँदी से ज्यादा परिग्रह नहीं करना । -चारों दिशाओं में एक साथ १५०० मील से ज्यादा यात्रा नहीं करना । -पन्द्रह कर्मादान व्यापार के त्याग । -प्रतिदिन सात सामायिक करना । -पाँच वर्ष तक प्रतिवर्ष वर्ष में दो माह की तपस्या करना। -एक वर्ष में छः पौषध करना। -शुद्ध साधु को सूझता आहार-पानी देना। -व्यापार करने का जीवनपर्यन्त त्याग । -स्नान करने में दस सेर से ज्यादा पानी काम में नहीं लेना। -पाँच वर्ष तक अष्टमी, ग्यारस और चतुर्दशी को उपवास करना। -एक माह में एक ही बार स्नान करना । -किसी भी जीमणवार में जीमने नहीं जाना।
-ससुराल पक्ष में कभी कोई सीख ग्रहण नहीं करना । (४) वि० सं० २००१ माघ शुक्ला ३-सुजानगढ़ मर्यादा महोत्सव के अवसर पर आचार्य श्री तुलसी से निम्न
त्याग लिए-जीवनपर्यन्त पैरों में जूते नहीं पहनना । -साधु जैसा भोजन करना। -प्रतिदिन आठ द्रव्यों से अधिक नहीं खाना । -एक साल में बारह बार बाल कटवाना । -वि० सं० २०१२ तक प्रतिवर्ष ७२ दिन की तपस्या करना। -पच्चीस हजार रुपये अपने लघु भ्राता भाई भँवरलालजी को जमाबन्दी के रूप में दे रखे थे, उनके ब्याज में प्रतिमाह १५० रुपये ही घर खर्च हेतु मँगाना
और इसी से घर का खर्च चलाना। -जीवनपर्यन्त चौविहार करना । यात्रा में भी यही क्रम रखना। -दूसरी पडिमा (प्रतिमा) का जीवन पर्यन्त संकल्प । -स्वयं के लिए मकान नहीं बनाना। -प्रतिदिन केवल एक विगय ही खाना। -दिन में तीन बार से ज्यादा भोजन नहीं करना । --एक दिन में भोजन के अलावा दो बार से ज्यादा पानी नहीं पीना। -जीवन भर वायुयान से यात्रा नहीं करना । -तपस्या के उपलक्ष में किसी प्रकार का लेन-देन नहीं करना । -बाजार से खरीदी गई मिठाई का त्याग । -तीन हरी चीजें यथा-तोरमी, मौसम्मी और आम ही खाने ।
--एक दिन में दस सेर से ज्यादा पानी उपयोग में नहीं लेना। (५) वि० सं० २००२ भाद्रपद शुक्ला ३-राणावास में मुनिश्री जशकरणजी से निम्न त्याग लिये
-चातुर्मास काल में सात वर्ष तक एकान्तर करना।
- Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org