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श्री जैन तेरापंथ महाविद्यालय, राणावास
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स्वीकृति एवं राजस्थान विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त करने के प्रयास शुरू हुए। अनेक प्रबुद्ध व्यक्तियों के अथक प्रयत्नों से महाविद्यालय के लिये राज्य सरकार से १९७४ में स्वीकृति प्राप्त हो गई परन्तु विश्वविद्यालय से सम्बद्धता (Affiliation) अनेक प्रयत्नों के बाबजूद भी १९७४ में प्राप्त न हो सकी; फिर भी १९७४ में महाविद्यालय का विधिवत शुभारम्भ कर दिया गया। इस वर्ष पाँच विद्यार्थी थे परन्तु केन्द्रीय संगठन मानव हितकारी संघ अपने पथ से विचलित हुए बिना विषम परिस्थितियों में घिरी नाव के नाविक की तरह सफलतापूर्वक इसका संचालन करता रहा । परीक्षा की घड़ी समाप्त हो चुकी थी और वह शुभ वर्ष आया जब १९७५ में राजस्थान विश्वविद्यालय से श्री सी० आर० जे० बी० एन० भंसाली वाणिज्य महाविद्यालय एवं श्री सी० जे० सेठिया कला महाविद्यालय के लिये मान्यता प्राप्त हुई। बाद में सन् १९७६ में अनेक तकनीकी कारणों, छात्रों की संख्या और विश्वविद्यालय द्वारा अनवरत आपत्तियों को देखते हुए दोनों महाविद्यालयों का संविलियन (Amalgamation) कर दिया गया तथा १९७६ से ही इसका नाम श्री जैन तेरापंथी महाविद्यालय राणावास कर दिया गया जिसके अन्तर्गत सी० आर० जे० बी० एन० भंसाली वाणिज्य संकाय और सी० जे० सेठिया कला संकाय का संचालन किया जा रहा है।
अस्थायी सम्बद्धता के लगभग पांच वर्ष बाद अप्रेल, १९८० से राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा इस महाविद्यालय को स्थायी सम्बद्धता (Permanent affiliation) प्रदान कर दी गई है। इससे पूर्व सन् १९७७ में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (U. G. C.) द्वारा महाविद्यालय का पंजीकरण हो चुका था । इन उपलब्धियों से महाविद्यालय के विकास और उन्नति के नये मार्ग प्रशस्त हो गये हैं। महाविद्यालय को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सूची में स्थान मिल जाने से विभिन्न विकास कार्यों के बीज-वपन हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आर्थिक सहायता मिलनी प्रारम्भ होने वाली है । अब यह दिन दूर नहीं जब महाविद्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सहायता से विशाल पुस्तकालय भवन, गैर आवासीय छात्र केन्द्र, जैमनेजियम हाल, केंटिन, साइकिल स्टैण्ड आदि महाविद्यालय परिसर को सुशोभित करेंगे । सन् १९८१ से महाविद्यालय राजकीय अनुदान सूची में स्थान प्राप्त करने में सफल रहा है। राज्य सरकार ने सत्र १९८०-८१ के लिए रुपये ६५,००० की अनुदान राशि अस्थायी (Ad-hoc) रूप से स्वीकृत की तथा १ अप्रेल, १९८१ से महाविद्यालय को नियमित रूप से ५०% अनुदान प्रदान करना स्वीकार किया है।
। वस्तुतः महाविद्यालय ने विगत पाँच वर्ष के अपने कार्यकाल में तीन ऐसी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, जो महाविद्यालय के प्रगति-पथ के इतिहास में मील के तीन पत्थर के रूप में चिर-स्मरणीय रहेंगी। ये उपलब्धियाँ हैंविश्वविद्यालय अनुदान आयोग से पंजीयन, राजस्थान विश्वविद्यालय से स्थायी सम्बद्धता एवं राजस्थान राज्य सरकार से नियमित अनुदान प्राप्ति । संभवतः यह पहला महाविद्यालय होगा, जो इतने अल्पकाल में शिक्षा जगत के मानचित्र में अपना एक स्थान बनाने में सक्षम रहा है।
महाविद्यालय कार्यकारिणी महाविद्यालय के प्रशासन एवं प्रबन्ध के सुचारु संचालन हेतु प्रतिवर्ष कार्यकारिणी का गठन किया जाता है, जिसका स्वरूप निम्न प्रकार है१-अध्यक्ष-१,
४-व्यवस्थापक-१, २-उपाध्यक्ष-१,
५-सदस्यगण-५ से ६ तक । ३-मंत्री-१,
कार्यकारिणी में कुल सदस्य संख्या नौ से लेकर १३ तक रहती है। विश्वविद्यालय के नियमों को दृष्टि में रखते हुए कार्यकारिणी में विश्वविद्यालय प्रतिनिधि, महाविद्यालय प्राचार्य एवं प्राध्यापक प्रतिनिधि को सदस्य के रूप में सम्मिलित किया जाता है।
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