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________________ . . . 4 . ..-501 MAMANYonrrenoN Hom.m. .m.-.....0 00100 00- PDAT उच्च शिक्षा का अनुपम स्थल श्री जैन तेरापंथ महाविद्यालय, राणावास 0 दानवीरचन्द भण्डारी हिन्दी विभाग, श्री जैन तेरापंथ महाविद्यालय, राणावास मारवाड़-मेवाड़ की सीमा पर स्थित कांठा क्षेत्र का प्रमुख कस्बा राणावास शिक्षा की ज्योति-शिखा को सम्पूर्ण भारत में ज्योतिर्मय कर रहा है । वस्तुतः यह ज्ञान-पिपासुओं और मुमुक्षुओं का विश्रान्ति-स्थल है। यहाँ ज्ञान की पुण्य सलिला गंगा निष्काम व अविरल गति से बह रही है। मशीनों और काम के कोलाहल से दूर वह राजस्थान का शांति निकेतन बन गया है। विद्या-भूमि के रूप में ख्यात राणावास ज्ञानार्जन, चरित्र-निर्माण और जीवन-निर्माण का पवित्र मन्दिर (Secred Temple of Learning) बनकर मानवीय मूल्यों को आलोकित कर रहा है । आज जबकि सारे देश का अधिकांश युवा मानस हड़ताल, तोड़-फोड़, घेराव और विध्वंसकारी प्रवृत्तियों से संलग्न है, फैशन एवं भौतिक चकाचौंध में व्यस्त व अभ्यस्त बनता जा रहा है, उसके ठीक विपरीत इस विद्या-भूमि राणावास में अध्ययनरत छात्र अपने अमूल्य जीवन को रचनात्मक व सर्जनात्मक दिशा में अग्रसर करने के लिये पल-प्रति-पल का सफल उपयोग कर रहा है। इस विद्या साधना का सम्पूर्ण श्रेय राणावास स्थित श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ तथा उसके कर्मठ संथापक-संचालक कर्मयोगी श्री केसरीमल जी सुराणा को है। इस संघ ने सन् १९४४ में पाँच विद्यार्थियों से प्राथमिकशाला का शुभारम्भ किया था, वह धीरे-धीरे वट वृक्ष के रूप में फलता-फूलता गया। लेकिन कर्मयोगी श्री सुराणाजी को इतने पर भी संतोष कहाँ था, वे तो विद्या-भूमि को उच्च शिक्षा केन्द्र के रूप में प्रस्थापित करने का स्वप्न सँजोये हुए थे। श्री सुराणाजी की मान्यता रही है कि एक ही प्रकार के वातावरण में रहकर विद्याध्ययन का प्रारम्भ कर उसकी समाप्ति करने वाले क्षेत्र में जो संस्कार पैदा होते हैं, वैसे संस्कार बार-बार विद्यालय परिवर्तन से छात्र में पैदा नहीं होते हैं । राणावास में हायर सेकेन्डरी तक की शिक्षा तो प्रदान की जाती थी किन्तु उसके बाद उच्च शिक्षा के अध्ययन की वहाँ कोई सुविधा नहीं थी। कांठा के ग्रामीण युवक को उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद पाली या जोधपुर की ओर जाना पड़ता था। यह बहुत खर्चीला मामला था। शहरों में जाने के बाद महाविद्यालयीय शिक्षा की चकाचौंध से अब तक के सुसंस्कारी बालक में अनेक तरह के परिवर्तन आ सकते थे। शहरों में चरित्रनिर्माण का वैसे ही अभाव रहता है। यही अनुभव करके माननीय श्री सुराणाजी ने भगवान महावीर के २५सौवें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर समाज को एक महाविद्यालय समर्पित करने की उद्घोषणा की। समाज के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने महाविद्यालयों के तत्कालीन वातावरण को देखकर इस निर्णय की आलोचना की और यहाँ तक कहा कि काका ने भांग खाई है, पर इस विरोध ने श्रीयुत् सुराणाजी के निश्चय को और दृढ़ बना दिया तथा समाज के सामने एक आदर्श महाविद्यालय प्रस्तुत करने का विचार कार्यरूप में परिणत होने लगा । जहाँ भी यह मनीपी, प्रबुद्ध चिन्तक, कर्मयोगी और तपस्वी महाविद्यालय भवन-निर्माण हेतु अर्थ संग्रह के लिये गया, वहाँ के धन कुबेरों ने अपनी थैलियाँ खोल दी, परिणामस्वरूप एक ही यात्रा में दस लाख रुपये तक की विपुल धन राशि जुटा ली गई । इस कांठा क्षेत्र में एक-दूसरे मदनमोहन मालवीय की प्रतिमा साकार हो उठी जिसके चरणों में लोग पावन उद्देश्य के लिये सहज ही धन समर्पित कर रहे थे । धन संग्रह के साथ ही राज्य सरकार से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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