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________________ श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ, राणावास का इतिहास १७१ । निष्ठावान व्यक्ति थे। उनके हृदय में आचार्य भिक्ष के सिद्धान्त व्याप्त थे। वे यह चाहते थे कि जिस प्रकार कांठा क्षेत्र धन-धान्य से समृद्ध है, उसी प्रकार तेरापंथ के सिद्धान्तों में भी परिपूर्ण हो, लेकिन इस समय यहाँ अज्ञान एवं अशिक्षा व्याप्त है, जिससे अनेक कुरूढ़ियाँ एवं कुप्रथाएँ प्रचलित हैं और समाज जर्जरित है । अगर अभी भारत की भावी विभूति बालक समुदाय में सशिक्षा, सद्विवेक और सद् आचरण की त्रिवेणी प्रवाहित कर दी जावे तो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की विशेष समृद्धि होगी। साथ ही उन्हें जैनधर्म एवं तेरापंथ के सिद्धान्तों से परिचित किया जावे तो वे सुलभ-बोधि एवं सम्यक्त्वदर्शी बनेंगे और अपना तथा दूसरों का कल्याण कर सकेंगे। उनके हृदय में ये विचार इससे एक वर्ष पूर्व भी उत्पन्न हुए थे और कार्यान्वित करने के लिये समाज के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों को अवगत भी कराये थे लेकिन श्री छोगमलजी चोपड़ा, निवासी गंगाशहर के अलावा किसी का अनुमोदन नहीं प्राप्त हुआ जिससे वे योजना नहीं बना सके । फलतः अब उन्होंने अपने इन विचारों को राणावास के श्री प्रतापमलजी, श्री मिश्रीमल जी, श्री गणेशमलजी, श्री केसरीमलजी सुराणा आदि सज्जनों को अवगत कराये । सबके हार्दिक एवं आर्थिक आश्वासन देने पर एक छात्रावासी विद्यालय प्रारम्भ करने का निश्चय किया गया। श्री मिश्रीमलजी सुराणा, जो एक गांधीवादी व्यक्ति हैं और जिनमें समाज-सेवा और देश-सेवा की सर्वोदय भावना है तथा जो सादा जीवन, उच्च विचार के प्रतीक हैं, ने अपना तन, मन और धन देकर इस कार्य को मूर्त रूप देने का बीड़ा उठाया। श्री छाजेड़जी ने आर्थिक सहयोग के साथ शारीरिक सहयोग प्रदान करने का आश्वासन दिया, जिससे इस शिक्षारूपी महायज्ञ को प्रारम्भ करने का निर्णय हुआ। विद्यालय एवं छात्रावास का श्रीगणेश संवत् २००१ वि० की आश्विन शुक्ला १० (विजयादशमी) तदनुसार दि० २७ सितम्बर, १९४४ ई० के शुभ मुहूर्त में मारवाड़ राणावास स्टेशन पर श्री सुमति शिक्षा सदन विद्यालय एवं श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी छात्रावास रूपी वटवृक्ष का बीज वपन किया गया जिसके संचालन का भार श्री मिश्रीमलजी सुराणा और अध्यापन का भार श्री मूलसिंहजी राठौड़, निवासी सूरसिंह का गुड़ा को सौंपा गया । फलस्वरूप सर्वप्रथम ५ विद्यार्थी प्रविष्ट हुए (१) लालचन्द गादिया (खीमाड़ा), (२) वरदीचन्द गादिया (खीमाड़ा), (३) सुगनराज खाटेड (खीमाड़ा), (४) आसकरण (जोजावर), (५) जुगराज मूथा (सूरसिंह का गुड़ा)। विद्यालय एवं छात्रालय के लिए श्री चाँद खाँ मिश्रुखाँ पठान का मकान १००) एक सौ रुपये वार्षिक किराये पर लिया गया तथा १ से ३ तक की कक्षाएं प्रारम्भ की गई । श्री बस्तीमलजी छाजेड़ एवं श्री मिश्रीमलजी सुराणा आदि शिक्षाप्रेमी व्यक्तियों के हृदय में इस विद्यालय को अखिल भारतीय स्तर के एक विशाल संस्थान का रूप देने की भावना थी। इस कारण उन्होंने मारवाड़, मेवाड़, थली तथा दूर-दूर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को पत्र द्वारा अपने विचारों से अवगत कराया और दिनांक २७ जनवरी १६४५ ई० की सामूहिक बैठक में सम्मिलित होकर अपने सुझाव तथा सहयोग देने का निमन्त्रण दिया। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी शिक्षण संघ की स्थापना दिनांक २७ जनवरी १६४५ ई० को राणावास में श्री केसरीमलजी सुराणा के निवासस्थान पर श्री छोगमलजी चोपड़ा की अध्यक्षता में एक बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें उपस्थिति निम्न प्रकार थी (१) श्री छोगमलजी चोपड़ा (गंगाशहर) (२) श्री जसवन्तमलजी सेठिया (बलून्दा) (३) श्री केवलचन्दजी सेठिया (बलून्दा) (४) श्री डूंगरमलजी साँखला (ब्यावर) (५) श्री रूपचन्दजी भण्डारी (राणावास) (६) श्री जवानमलजी सुराणा (राणावास) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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