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श्री जन श्वेताम्बर तरापंथी मानव हितकारी संघ, (राणावास) का इतिहास 0 श्री तख्तमल इन्द्रावत, साहित्यरत्न (अध्यापक, सुमति शिक्षा सदन, उ० मा० विद्यालय, राणावास)
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हमारे देश में राजस्थान वीर-प्रसविनी भूमि के रूप में प्रख्यात है । इसके कण-कण में शौर्य, साहस, स्वतन्त्रता, त्याग, तपस्या एवं बलिदान की ओजस्वी कथाएँ व्याप्त हैं। कलाप्रेमी कुम्भा, स्वतन्त्रता सेनानी महाराणा प्रताप, दानवीर भामाशाह, स्वामिभक्त दुर्गादास राठौड़, पितृभक्त चूण्डा, शिल्पस्नेही महाराजा जयसिंह, साहित्य सरक्षक महाराजा अनूपसिंह, भक्तिमती मीरा, सन्तशिरोमणि दादू और क्रान्तिकारी आचार्य भिक्षु इस वन्दनीय वसुन्धरा के यश-गौरव हैं।
__इसी पुण्य-भूमि राजस्थान के पश्चिम में मारवाड़ की महिमामण्डित धरा अपनी कीति गाथाओं को अंक में संजोये अवस्थित है। मारवाड़ के दक्षिणी-पूर्वी भाग का लगभग तीन सौ वर्गमील का क्षेत्र 'कांठा' के नाम से जनजन में लोकप्रिय है । कांठा क्षेत्र के मध्य अरावली पर्वतमाला के गोरम पहाड़ की तलहटी और समतल मैदान में मारवाड़ राणावास नामक रेलवे स्टेशन है । यह स्टेशन सन् १६३५ में स्थापित हुआ था और मारवाड़ जंक्शन से उदयपुर मेवाड़ जाने वाली पश्चिमी रेलवे लाइन का यह प्रथम स्टेशन है। स्टेशन के समीप ही एक छोटा सा उपनिवेश स्थापित हो गया है । इस उपनिवेश से एक मील की दूरी पर राणावास गांव स्थित है । यह समग्र क्षेत्र अब एक बहुत बड़े शिक्षा केन्द्र के रूप में राजस्थान के मानचित्र पर अंकित है जो अपर नाम विद्याभूमि के रूप में भारत भर में सूख्यात है। विद्याभूमि के रूप में इसके विकास का एक लम्बा किन्तु रोचक इतिहास है। मुनिश्री जीवनमलजी का चातुर्मास
बात संवत् २००१ अर्थात् सन् १६४४ ई० की है । इस समय राणावास गाँव के प्रमुख श्रावक श्री मिश्रीमलजी सुराणा, श्री सुमेरमलजी सुराणा आदि चूरू के मर्यादा महोत्सव पर तेरापंथ के नवम् आवार्य श्री तुलसी गणी के दर्शन करने गये थे और अपने यहाँ चारित्रात्माओं के चातुर्मास कराने की विनती की । फलस्वरूप आचार्यदेव ने महती कृपा करके मुनिश्री जीवनमलजी स्वामी ठाणा ३ का चातुर्मास कराने का फरमाया । मुनिश्री बड़े ही विद्वान, गम्भीर एवं तत्त्वज्ञ थे जिससे चातुर्मास में यहाँ के श्रावक यथा--श्री जवानमलजी, श्री प्रतापमलजी, श्री मिश्रीमल जी, श्री सुमेरमलजी, श्री गणेशमलजी, श्री केसरीमलजी सुराणा, श्री धनराजजी आच्छा, श्री गणेशलालजी बरलोटा, श्री चौथमलजी कटारिया, श्री रूपचन्दजी भण्डारी आदि-आदि श्रावको तथा उनके परिवार वालों ने (कूल १६ घर) दर्शन, सेवा और भक्ति का पूरा-पूरा लाभ उठाया और तेरापंथ के सिद्धान्तों के विकास में अपना सहयोग प्रदान किया। उदभव के अंकुर
___ इसी चातुर्मास में सिरियारी ग्राम के श्री बस्तीनलजी छाजेड़ ने एक संघ रूप में आकर राणावास में मुनिश्री के दर्शन किये और सेवा का लाभ लिया। श्री छाजेड़जी एक समाजसेवी, शिक्षाप्रेमी और धर्म के प्रति
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