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काभ्याम्बलि
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कर्मयोगी बनने फिर लौट आयाअपनी कृतित्व धरा पर।
भावनाओं की अलख जगाई, और आखिरी मंजिल के लियेलक्ष्य की ओर बढ़ता गया।
और ! सामाजिक एवं राष्ट्रीय दायित्व के निर्वाहन हेतुशिक्षा का क्षेत्र चुना कार्य का प्रारम्भसुमति शिक्षा सदन की शुरुआत के साथसंस्कार निर्माणचारित्रिक निष्ठानैतिक गतिशीलतास्नेहपूर्ण व्यवहार की शृखला में लक्ष्य गतिशील हुआ।
फलस्वरूप ! मरुभूमि में लगाया गया वह छोटा-सा पौधा विराट वट वृक्ष बन गयातेरापंथ जगत का यह "रवीन्द्रनाथ टैगोर" हमारा अपना सबका बन गया।
धुन के धनीइस लोह पुरुष केअभिनन्दन के अवसर पर समाज सेवी से समाजभूषण से अलंकृत मरुधरा के इस कर्मयोगी कोशत शत वन्दन !
वह कर्मयोगी गाँव-गाँव धूमा, कठिन परिश्रम किया
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(लय-आई बिरखा बीनणी) ज्ञानी-ध्यानी, जीवनदानी, काकासा की अलख कहानी । देती सबको प्रेरणा हो. प्रेरणा हो, प्रेरणा हो।
काकासा की अलख कहानी
करते हैं निःस्वार्थ भाव से सेवाएँ दिन-रात । सार संभाल सदा करते हैं बड़ी लगन के साथ । परम यशस्वी, हैं वर्चस्वी, परपीड़ा निज सम पहचानी ॥
(२) त्याग और वैराग भाव से जीवन ओत-प्रोत ।
जीवन के कण-कण में बहता समता-रस का स्रोत । चाहें जब ही देखो कबही खुली किताब बड़ी बलिदानी ॥
मुनि श्री रोशनलाल (सरदारशहर)
माताजी का मिला साथ में मणि-कांचन का योग । किसी भाग्यशाली को मिलता ऐसा शुभ संयोग । सुन्दरदेवी शासनसेवी, धर्मनिष्ठ है बड़ी सयानी ।।
रमी हुई है रग-रग में स्वामीजी की श्रद्धान ।
गुरु तुलसी की दृष्टि पर न्योछावर करते प्राण । है दृढधर्मी, ये शुभकर्मी, कथा रसीली जानी-मानी।।
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