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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
भुल्या कदे न जाय
मुनि श्री अगरचन्द
दोहा
तेरापंथ में चालसी, श्रावकां रो इतिहास जिण में केसरीमलजी सुराणा भी खास ||१|| जनम्या राणावास में, कांठा बिच में गाम । दोय कोसरे आंतरे, भीखण बाबे की धाम ॥ २ ॥
व्यापार करता बोलारम में जोरदार थो नाम । जागी अन्तर् आत्मा, छोड़ दियो सब काम ||३|| सेर-सेर सोनो पहरती, घूंघट तो भरपूर । सुन्दरबाई धाविका, चटके कर दियो दूर ॥४॥ अंधरूड़ियां छोड़ दीं छोड्यो सोने को बनी सहयोगी श्राविका, जोड़ो मिलग्यो त्याग तपस्या सांतरी, सामायक अणपार । अगर लिखूं विस्तार सुं, तो ग्रन्थ बने एक प्यार || ६ ||
हाड़ हाड़ नी मीज्यों, रंगी धर्म रे माय । सरधा तेरापंथ में, दृढ़ विश्वास लगाय ॥७॥ कृपा-पात्र गणी तुलसी का, अरज करी स्वयमेव । चातुर्मास राणावास में हुक्म लियो ततखेव ||८||
,
खाणो पीणो सादगी ज्यादा समय त्याग में,
रहणो संयम माय । बाकी बोडिंग माय ॥ ॥
मोह ।
ओह ||५||
जमकर राणावास में संस्कार छात्रों में भरे, नहीं नाम री भावना, तन मन धन सुं दोनों ही मुनि 'अगर' ने गौरव है, श्रावक चमक्या जोर का,
।
पकड़यो छात्रावास । जैनधर्म का खास ॥१०॥ निःस्वार्थ री सेव । जीवन लगा दियो शेष ॥ ११ ॥ जन्म भूमि रे पास। तेरापंथ में खास || १२ ||
होया ने होसी घणा, इण शासण रे माय । पिण सुराणा केसरी भुल्या कदे
न
याद करसी पोखलो, सारा ही तेरापंथ समाज तो, मानेला
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जाय ॥ १३ ॥
नर-नार ।
उपगार ||१४||
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