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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्य: प्रथम खण्ड
श्याम देह बापू-सी
0 प्रोमनोहर छाजेर 'भारतीय' (बैंगलूर)
चश्मे से झांकती
सरल सादगी से शोभित, दो अनुभवी,
शृंगारित जीवन । स्नेही,
मन से समर्पित, वात्सल्यमयी,
तन से समर्पित, अनुरागी
धन से समर्पित, आँखें।
शिक्षा-हित, दुबला शरीर
जन-हित, सबल मनोबल,
निःस्वार्थ वृत्ति से, मरुथल की स्वर्ण-किरणों में,
बढ़ता जाता, अविराम श्रम से,
करता जाता, कुछ नव्य प्रयोग। श्याम देह
मरुधर में बापू सी!
वह पौध लगाता, अर्ध नग्न बदन,
पानी देता, कुछ नंगा,
निष्ठा से कुछ लिपटा,
शस्य श्यामला, धुधले से,
द्रुम-दल शोभिता, श्वेत वस्त्र में
पुष्प-फलों से सज्जिता, स्वस्थ शरीर,
आज वही मरुस्थल । स्वस्थ मनोबल,
परिणाम, स्वस्थ खान-पान-व्यवहार,
यह सब? नियमित, मर्यादित जीवन ।
एक ही व्यक्ति के श्रम का है, सरल मना,
उसकी निरन्तर साधना का है, सरल तना,
निष्ठा का है, विश्वास का है। शत-शत वंदन
0 श्री देवेन्द्र कुमार हिरण (गंगापुर) सात दशक पूर्व
गृहस्थ जीवन की गाड़ी मारवाड़ की धरती पर
गतिशीलता की ओर थीएक शिशु आया
कि, अचानक प्रारम्भिक शिक्षा पा,
जीवन में एक नया मोड़ आया गृहस्थी संचालन के लिये
भावनाओं में बदलाव हुआ व्यापारी बन चल पड़ा।
चिन्तन की परिणति दक्षिण भारत की ओर !
जीवन निर्माण की सही दिशा की ओर प्रेरित हुई। हैदराबाद को चुना अपना कर्मक्षेत्रव्यापार चल पड़ा, और
और ! शल व्यापारी की ख्याति अर्जित की।
वह कर्मशील व्यापारी
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