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सेवा से इतिहास
[ प्रो० देवकर्णसिंह रूपाहेली (उदयपुर)
कथी न कथनी केसरी, करम आखरां मांडियो देव द्रव्य परकाज हित, मरुधर महजन केसरी, सतकरमा रो यो वणज आप कर्यो अद्भुत । कयो ध्रुवों धन केसरी, ज्ञान यज्ञ आहूत || ३ || लखा-गुणां जग मोखला, यांरी बीजी गल्ल । जन सेवा रो कीरथंब, थप्यो केसरीमल्ल ||४||
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बिरथ गमावण सांस । सेवा रो इतिहास ||१|| करी फकीरी प्रीत । राखी भामा रीत ॥ २ ॥
सुरराणी राजी करी करने अविद्या नाश । सुराणे राणावास घर, करियो सुरसत वास ||५|| समायां पाले सदा, सुराणो सागेह । तेरापंथी केसरी, मनखपथी आगेह ||६||
fer विष अभिनन्दन करूँ, सुराणा धारोह । तं अखरां रो बांटयों, आखर तव वारोह ||७||
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१. हे तपोनिष्ठ व्यक्तित्व केसरीमल सुराणा ! तुमने कोरी बातों में ही अपने जीवन को नहीं बिताया अपितु कर्मरूपी अक्षरों में अपनी सेवाओं का इतिहास अंकित किया है ।
२. हे मरु- प्रदेश ( राजस्थान) के महाजन केसरीमल ! तुमने अपने पुरुषार्थ से अर्जित सम्पूर्ण द्रव्य परमार्थहित अर्पित करके स्वेच्छा से फकीरी अंगीकार की है और इस प्रकार तुम्हारा यह युगानुरूप त्याग इतिहास प्रसिद्ध मेवाड़ के महान देशभक्त दानवीर भामाशाह की परम्परा का ही अनुसरण है ।
३. हे श्रेष्ठिपुत्र सुराणा ! तुमने यह कैसा अनूठा व्यापार किया है कि अपने धन की, ज्ञान यज्ञ में आहुति देकर उसका धुआँ कर दिया ।
४. विश्व में जहाँ-तहाँ निर्मित अनेक कीर्तिस्तम्भ देखे सुने गये हैं, पर हे केसरीमल ! तुमने अपनी जन्मभूमि राणावास में लोकसेवार्थ एक अनूठा कीर्तिस्तम्भ स्थापित करके अक्षय यश कमाया है ।
५. हे सुराणा केसरीमल ! तुमने अपनी महती शिक्षण संस्था द्वारा अविद्या का नाश करके 'सुरराणी' (सरस्वती) को प्रसन्न किया है और यही कारण है कि तुम्हारी साधना से राणावास में आज सरस्वती का निवास हो गया है ।
६. हे केसरीमल ! तुम एक धर्मनिष्ठ व्यक्तित्व के रूप में धर्म-कर्म का पालन तो नियमित रूप से करते ही हो पर इन सारी बातों से परे तुम में मनुष्यता कूट-कूट कर भरी है और यों तुम एक महामानव के रूप में सदा अभिनन्दित हो । ७. हे सुराणा ! तुम जैसे परमहंस व्यक्तित्व का कैसे अभिनन्दन किया जाय । वस्तुत: तुमने अक्षर बाँटकर विद्यादान किया है अतः मैं तुम्हारी अर्चनार्थ ये अपने विनम्र अक्षर तुम्हारे पर न्यौछावर करके आह्लादित हूँ ।
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