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________________ राजस्थान की जैन कला १६६ ......................................................................... सूरि, जिनकुशलसूरि, जिनचन्द्रसूरि के जीवनी सम्बन्धी अनेकों चित्र तीनों ओर की दीवारों पर काफी संख्या में बताये जाते हैं । बीकानेर के सबसे प्राचीन चिन्तामणि के मन्दिर में दादाजी को देहरी है, उसमें तथा उदरामसर आदि की दादाबाड़ियों में भित्तिचित्र हैं, पर सबसे अधिक चित्र रेल दादाबाड़ी में मेरे बड़े भ्राता मेघराजजी की देखरेख में बनाये गये हैं । दादावाड़ियों के चित्रों की एक अलग परम्परा है। अजमेर आदि अनेक जैन दादावाड़ियों में मूल गुम्भोर या बाहर के मण्डप में दादाजी की जीवनी सम्बन्धी अनेकों भित्ति-चित्र देखने को मिलते हैं । व्यक्ति चित्र और प्रतीक चित्र भी जैन समाज ने हजारों की संख्या में बनाये हैं । व्यक्ति चित्रों में सबसे पहले तीर्थंकरों, आचार्यों, श्रावकों के चित्र उल्लेखनीय हैं । तीर्थकर चित्रों में ऋषभदेव, नेमिनाथ, पारसनाथ, महावीर और उनमें भी सबसे अधिक पारसनाथ के सुन्दर चित्र प्राप्त हैं । पारसनाथ के सात नागफन ही नहीं, सहस्रों नागफनों वाली मूर्तियों की तरह चित्र भी मिलते हैं जिनमें कमठ का उपसर्ग, विशाल सर्प और धरणन्द्र तथा पदमावती चित्रित भी किये गये हैं । चौबीस तीर्थकरों के संयुक्त चित्र भी मिलते हैं और अलग-अलग भी; जिनमें प्रत्येक तीर्थकर के वर्ण, लांछन आदि की भिन्नता रहती है । ऐसे एक-एक तीर्थंकर के चित्रों का संयुक्त एलबम चौबीसी कहलाती है। प्रति दिन भक्तगण अपने घरों में इन चौबीसों के दर्शन करते थे। इसलिए सैकड़ों सचित्र चौबीसियाँ बनाई गईं, जिनमें से कुछ तो कला की दृष्टि से बहुत सुन्दर हैं। जिस प्रकार प्रत्येक राज्य में वहाँ के शासकों की चित्रावली बनाई गई उसी तरह जैनों के गच्छपति, आचार्यों, विशिष्ट मुनियों, यतियों की चित्रावली बनाने की एक परम्परा रही है । खरतरगच्छ के कई आचार्यों आदि के चित्र हमने अपने ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह आदि ग्रन्थों में प्रकाशित करवाये हैं । कई अप्रकाशित चित्र भी हमने देखे हैं और कुछ हमारे संग्रह में भी हैं । हमारे कला भवन में जिनदत्तसूरि के पंचनदी साधन, लोंकागच्छ के आचार्य व ज्ञानसागरजी, क्षमाकल्याणजी, जयकीतिजी आदि के ऐतिहासिक चित्र हैं। इसी तरह जैन श्रावकों में कर्मचन्द बच्छावत, अमरचन्द सुराणा आदि के चित्र हैं। . प्रतीक चित्रों में लेश्या, मधुबिन्दु, ऋषिमण्डल तथा पूज्य चित्रों में नवपद, सिद्धचक्र, सर्वतोभद्र, ह्रींकार आदि के प्रतीक चित्र उल्लेखनीय हैं । इनमें से सिद्धचक्र वाले चित्रों में तो मोती जड़े हुए भी प्राप्त हैं। _प्रतीक चित्रों में भौगोलिक चित्रों के अतिरिक्त नारकी के चित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जैन धर्मानुसार घोर पाप करने वाले नरक में उत्पन्न होते हैं। उनमें से कौन से पाप करने वाले को किस तरह का दारुण दु:ख नरकलोक में भोगना पड़ता है। इस बात को सर्वसाधारण के हृदय तक पहुँचाकर उन पापों से विरत करने के लिए अनेकों प्रकार के चित्र बनवाये गये । इसी तरह पाँच मेरु पर्वत, कई तीर्थों, द्वीप, समुद्रों आदि के प्रतीक चित्र बनाये गये जिनसे जैन मान्यताओं की सचित्र जानकारी सबको सुलभ हो सके। हस्तलिखित प्रतियों में चित्र बनाने के साथ-साथ इन प्रतियों को सुरक्षित रखने के लिए जो पुठे व दाबड़े बनाये गये उनमें तथा लिखने के काम में आने वाले कलमदान आदि में भी चित्र बनाये जाते रहे हैं । दाबड़े और पुछे तथा कलमदान अधिकतर पुढे के बनाये जाते हैं । रद्दी कागजों को पानी में गलाकर कूटकर गत्ते जैसे बनाये जाते हैं। उनके पुढे हजारों की संख्या में बने और उनमें से कइयों पर तीर्थंकरों की माता के चौदह स्वप्न, अष्ट मंगलीक, नेमिनाथ की बारात, मधुविन्दु, इलाचीकुमार का नाटक, फूल, बेल, पत्तियाँ आदि अनेक प्रकार के चित्र बनाये गये । हमारे संग्रह में ऐसे पच्चासों पुढं हैं । जिनमें से एक पुट्ठा करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पुराना है । एक पुढे पर चमड़ा लगाकर बेल-बूटियों का सुन्दर काम किया हुआ है। कई दाबड़े भी बहुत कलापूर्ण बनाये गये हैं और एक पुछे के कलमदान पर सुन्दर चित्रकारी हमारे संग्रह में है। यहाँ पुढे के हाथी, मन्दिर आदि अनेक प्रकार की वस्तुएँ चित्रित और कारीगरी वाली पाई जाती हैं । लकड़ी की पेटियों पर व पट्टियों पर सुन्दर चित्र हमारे संग्रह में हैं। राजस्थान की जैन चित्रकला की अभी तक विद्वानों को सही जानकारी नहीं है क्योंकि इस सम्बन्ध में जो भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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