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अहमदाबाद युद्ध के जैन योद्धा
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उक्त युद्ध में महाराजा अभयसिंह की ओर से लड़ने वालों में जिन जैन सैनिक पदाधिकारियों (दीवानों, फौजबख्शियों और हुजदारों) ने भाग लेकर अद्भुत शौर्य प्रकट किया था तथा अपने बुद्धि चातुर्य से उस युग के प्रतिनिधि व्यक्तियों में अपना नाम लिखा गये उन कतिपय वीरों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है।।
१. अनोपसिंह भण्डारी-यह राय भण्डारी रघुनाथसिंह का पुत्र था। रघुनाथसिंह भण्डारी स्वयं महाराजा अजीतसिंह के शासनकाल में एक महाशक्तिशाली पुरुष हो गया है। यह अजीतसिंह का दीवान था। इसमें शासन-कुशलता और रण-चातुर्य का अद्भुत संयोग था। महाराजा की अनुपस्थिति में कुछ समय तक मारवाड़ का शासन भी किया। इससे सम्बन्धित निम्नलिखित दोहा बहुत प्रचलित है
करोड़ा द्रव्य लुटायौ, हादौ ऊपर हाथ ।
अजौ दिली रो पातसा, राजा न रघुनाथ ॥ , अपने पिता रघुनाथसिंह भण्डारी की भाँति अनोपसिंह भण्डारी बड़ा बहादुर, रणकुशल तथा नीतिज्ञ था। संवत् १७६७ में महाराजा अजीतसिंह द्वारा जोधपुर का हाकिम नियुक्त किया गया जिसको इसने पूरी तरह निभाया। संवत् १७७२ में इसको नागौर का मनसब मिला तथा महाराजा ने इसको व मेड़ते के हाकिम पेमसिंह भण्डारी को नागौर पर अमल करने के लिए भेजा जिसमें सफलता प्राप्त की। विक्रम संवत् १७७६ में फर्रुखसियर के मारे जाने के बाद फौज के साथ अहमदाबाद भी इसको भेजा वहाँ भी इसने बड़ी बहादुरी दिलाई।
२. अमरसिंह भण्डारी-इसके पिता का नाम खींवसी भण्डारी था । खींवसी भण्डारी महाराजा अजीतसिंह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से था । मुगल सम्राट पर्रुखसियर पर इसका बड़ा प्रभाव था। करणीदान रचित सूरजप्रकास' के अनुसार हिन्दुओं पर से जजिया कर छुड़वाने में इसने महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया था । खींवसी जोधपुर राज्य की तरफ से वर्षों तक मुगल दरबार में रहा।
खींवसी भण्डारी का पुत्र अमरसिंह भण्डारी भी योग्य एवं कुशाग्र बुद्धि वाला था। महाराजा अभयसिंह के शासन काल में वि०सं० १७६६ से १८०१ तक जोधपुर का दीवान रहा । अहमदाबाद युद्ध के समय यह दिल्ली में महाराजा अभयसिंह का वकील था। यह बहुत बुद्धिमान, चतुर और अपने समय का कुशल राजनीतिज्ञ था।
भंडारिय ता मंत्री कुलि भांण । दिल्ली अमरेस हुतौ दइवांण ॥ जिको पिंड सूर दसा परवीण । रहै दत्त स्याम धरम सुलीण ॥ लिया सुते खीमे भुजा रंज लाज । असप्पतिहूंत तूं कीध अरज्ज ।।
जिकै विध कीध फतै महाराज । कही धर गुज्जर कथ्थ सकाज ॥' ३. रत्नसिंह भण्डारी—यह महाराजा अभयसिंह के विश्वासपात्र सेनानायकों में था। यह बड़ा वीर, राजीतिज्ञ, व्यवहारकुशल और कर्तव्यपरायण सेनापति था । मारवाड़ राज्य के हित के लिए इसने बड़े-बड़े कार्य किये । वि०सं० १७९३ में महाराजा अभयसिंह रत्नसिंह भण्डारी को गुजरात की गवर्नरी का कार्यभार सौंपकर दिल्ली चले गये थे तब इसने बड़ी योग्यता के साथ इस कार्य को किया । रत्नसिंह ने अनेक युद्धों में भाग लिया। देश में चारों ओर जब अशान्ति छाई थी, मरहठों का जोर दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था ऐसी विकट परिस्थिति में सफलता प्राप्त करना रत्नसिंह जैसे चतुर और वीर योद्धा का ही काम था। कविराजा करणीदान ने अपने ग्रन्थ सूरजप्रकास में इस वीर के युद्धकौशल व वीरता का वर्णन इस प्रकार किया है
महाबल हूर वरावत मीर । बडौ महाराज तणौ स वजीर ।। दुवै सुत 'ऊद' तणा दइवांण । भंडरिय कट्टिया खाग भयाण ।।
१. सूरजप्रकास, भाग.३, सम्पादक-सीतारामलालस, पृ० २७६.
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