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________________ संक्षिप्त जीवन परिचय भवरलालजी का जन्म संवत् १९६८के आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को हआ है।। सुशीला, श्रीमती तीजावाई की गोद में इनका लालन-पालन हुआ। पिता श्री भैरूदानजी एक कर्मठ व्यवसायी, लोकप्रिय तथा धार्मिक प्रकृति के व्यक्ति थे। अध्यवसाय उनका लक्ष्य था और जीवन पवित्र । फलतः पुत्र की भावनाओं में कभी अन्तर नहीं आ पाया । वैसे पूरा का पूरा नाहटा परिवार अपनी एक पूज्य परम्परा रखता है। केवल उदरपूर्ति व भोग-विलास की कामना से धनोपार्जन इस परि ।र की चेष्टा नहीं रही। तपःपूत चरित्र, धार्मिक निष्ठा तथा सतत् प्रयास जिनका विकास श्री भंवरलालजी में क्रमशः हुआ इनके व्यक्तित्व को समय-शिलापर चित्र बनता गया । जेन शिक्षालय, बीकानेर में ही आपका विद्यारम्भ मुहूर्त हुआ पर शिक्षा इन्हें मात्र ५वीं कक्षा तक मिली। चाचा अभय राजजी, जिन्हें संसार प्रिय नहीं लगा. स्वर्ग सिधार गये, आपको संयम व व्रत की शिक्षा दे गये । फलतः होश संभालने के साथ ही जैनशासन की विभिन्न साधनाओं में आपका मन रमने लगा. जिसका क्रम हम आज मी यथावत् पाते हैं। अध्ययन की रुचि आपको श्री अगरचन्दजी काकाजी से मिली। दोनों ही महानुभाव प्रायः हमउम्र रहे हैं लेकिन पूज्य-पूजक की भावना यथावत् है। मर्यादा ने आँख की शर्म का शान बनाये रक्खा है। व्यापारिक उत्थान-पतन की चिन्ता से दूर. भावनाओं के संसार में खुले पंख उड़ने की अनन्त कामना वरदपुत्रों के रखे हैं। पूज्य माताजी का प्यार कुछ समय तक हो मिल पाया था क्योंकि उनकी पुकार आ गयी थी। पिताश्री ने वाह किये थे। आप उनकी द्वितीय पत्नी की देन हैं | माताजी की मृत्यु के १० वर्ष पश्चात् आप श्री लक्ष्मीचन्द जी की गोद में चले गये । आपको पूरे परिवार का स्नेह सुलभ रहा । १४ वर्ष की अवस्था में आपका शुभ पाणिग्रहण संस्कार सं० १९८३ की मिती आषाढ़ बदी १२ को श्री रावतमल सुराणा की सौभाग्यवती कन्या श्रीमती जतनदेवी के साथ सम्पन्न हुआ। आपके दो पुत्ररत्न श्री पारसकुमार और पदमचन्द तथा दो सुशीला पुत्रियाँ श्रीकान्ता तथा चन्द्रकान्ता हैं। पुत्रियाँ अपने सम्पन्न घरों में पुत्र. धन-धान्य पूर्ण सुखमय जीवन व्यतीत कर रही हैं और प्रथम पुत्र श्री पारसकुमार कुशल व्यवसायी, शुद्ध व्यावहारिक, शान्त पर गम्भीर व्यक्तित्व से समन्वित तथा वर्तमान युग की उच्चतम शिक्षा, एम० काम०, एल० एल० बी० की रपाधि से विभूषित योग्य नवयुवक हैं। इनमें सामाजिक व नैतिक मर्यादा है. व्यक्तित्व को परखने की अपनी दृष्टि है । समय, समाज व परिस्थितियों के साथ गतिशील होने की शक्ति है । साहस है और है एक आत्मबोध, जिसमें संतुष्टी के समापन की विचित्र शक्ति संनिहित है। कर्तव्य इनका लक्ष्य है और सिद्धि इनकी प्रेरणा। वर्तमान इनसे संतुष्ट है और ये वर्तमान से संतुष्ट । फलतः भविष्य इनका अपना है। इनकी आकांक्षायें इनके प्रयत्न की सीमाओं में ही शरण पाती हैं। आप अपनी प्रिय पत्नी और अपने चार पुत्रों तथा एक पुत्री के साथ सुखी हैं। द्वितीयपुत्र श्री पद्गम ने बी० एस-सी० तक अध्ययन क्रम जारी रखा, आजकल पिताजी के साथ व्यवसाय में संलग्न हैं। नितान्त इन्टोवर्टी कर्मठ शान्त व सशील परिवार की मर्यादा के अनुकूल इनका जीवन है। आपका विवाह एक सुशिक्षित व धर्मशीला महिला से सम्पन्न हुआ है । एक सुन्दर-सा पुत्र आपकी गोदका श्रृंगार है । इसी छोटे से परिवार के साथ भवरलालजी पर्याप्त संतुष्ट रहते हैं। भाग्य की बिडम्बना ने कभी भी इन्हें निराश नहीं किया। [७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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