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________________ सावय जण उवयारो किच्चा संठावियोऽणेगे। विज्जालयादि पवरा सव्वपिओ भूय कय अत्थो ।।३।। पत्तो सुरालयम्मि इंदादि पडिबोहणा कज्जे। भारहवासी भत्ताण पूरिज्जंतु सयलमण इच्छा ।।४।। इसी प्रसंगमें आपकी आत्माभिव्यक्ति का एक नमूना उपस्थित करने के लोभका संवरण नहीं कर पा रहा हूँ। आपके दीक्षागुरु श्री सहजानंदजीके निधनका समाचार आपको अजमेरसे बीकानेर जाते समय ट्रेनमें मिला ओर आपने पूज्य श्रीपादके प्रति अपनी भावनाओंको प्रकृतका यह रूप दिया अज्झत तत्तस्स सुपारगामी एगावयारी पूइय सुरिन्दो । मुगीन्द मउड़ो सुजुगप्पहाण गुरुवरो सहजाणंद णामो ||१|| निव्वाणवत्तो सुसमाहिजत्तो कत्तीय धवले तइयातिहीए । निच्छत्त जाओ इह भरहखित्तो धम्मस्स एगो सायार रूवो ॥२॥ खेयेण खिन्नो सुमुमुक्खु संघो जाओ निरालंब समग्गलोओ। विदेह खित्तट्ठिय ते महप्पा भत्ताण देहिं निव्वुइ सुसत्तो ॥३।। प्राकृतके एक ग्रन्थ जीवदया प्रकरणकी प्राचीन प्रति उपलब्ध होनेपर जब आपने उसे श्री हरखचंदजी बोथराको दिखायी थी, आपने आग्रह किया कि प्राकृत पद्योंका हिन्दी पद्यानुवाद भी प्रस्तुत करनेका प्रयास करें तो ग्रन्थ अधिक मूल्यवान हो जायगा। आपने अनुरोध स्वीकार कर लिया और प्रायः चार-पाँच दिनोंमें ही गद्य-पद्यानुवाद हरिगीतिका चंदमें कर डाली! काव्य-प्रतिभाके धनी आपकी सहज अनुवादकी शैलो मूलभावोंकी कितनी अंतरंगिणी बन सकी है एक-आध उदाहरण पाठकों के लिए पर्याप्त होंगे संशय तिमिर पयंगं भवियायण कुभय पुन्निमा इंदं । काम गईद सइंदं जग जीव हियं जिणं नमिउ ||१|| संशय तिमिरहर तरणि सम जिनका परम बिज्ञान है, भविजन कुमुद सुविकास कारक चंद्रसम छविमान है। करिवर्य मकरध्वज बिदारण सिंहसम उपमान है. जग के हितकर तीर्थपति को नमन मंगल खान है ॥१॥ दियहं करेह कम्मं दारिद्द हएहिं पुट्ठ भरणत्थं । रयणीसु गेय गिद्दा चिंताए धम्म रहियाणं ॥३८॥ ६८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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