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________________ गुणी जनों के गुग याद करना मानव का फर्ज है। नाहटाजी श्रीमान भँवरलालजी का अभिनन्दन समारोह मनाया जा रहा है सो अति ही आवश्यक कार्य होगा। नाहटाजी के लेख व कई एक प्रतियां पढ़ी जिससे यह अनुभव होता है कि ऐसे भौतिक समय में भी अध्यात्न- ज्ञान के लेख व कृतियां जादू-सा ही काम करके मानव जीवन को सफल बनाने के लिये अति उपयोगी होते हैं। नाहटाजी की सरलता व सादगी व प्रेमभरा व्यवहार हमें हमेशा याद रहता है। - मोतीलाल लछमनदास जैन, तलोदा, महाराष्ट्र परमार्हत श्रेष्ठी आदरणीय भँवरलालजी नाहटा एवं उनके परिवार के साथ हमलोगों के सम्बन्ध सदा से अत्यन्त आत्मीय और मधुर रहे हैं। स्वर्गीय अगरचन्दजी नाहटा की भाँति श्री भंवरलालजी नाहटा को यदि धर्म, संस्कृति और साहित्य के महासागर में प्रकाश स्तम्भ की संज्ञा दें तो कदाचित् अत्युक्ति न होगी । निस्सन्देह वे इस क्षेत्र में एक निष्ठापूर्वक समर्पित व्यक्तित्व हैं। यदि इस तथ्य को यूं स्पष्ट करें कि भारत के धर्म, संस्कृति और साहित्य के इतिहास में यदि किसी एक ही ऐसे नाम की गवेषणा करें जो अपने आप में एक पूरा अध्याय बन कर जुड़ गया हो तो श्री भंवरलालजी साहब के नाम पर आकर ठिठक जाना पड़ेगा। सुज्ञजनों से परिचय प्राप्त करना मुझे प्रिय रहा है, पर आप जैसे मर्मज्ञ कभी-कभार ही मिल पाये हैं। उनके समीप बैठने का मुझे जितना बार भी अवसर पड़ा, यही अनुभूति हुई मानों मैं किसी व्यक्ति के समक्ष न होकर किसी शब्दकोश के सामने बैठा हूँ । मेरी निजी मान्यता है कि ज्ञानसाधना शुद्ध स्वार्थ है, और शुद्ध स्वार्थ ही जब सम्यक विस्तार करता है तो परमार्थ में परिवर्तित हो जाता है, इसी समीकरण से सिद्ध होकर श्री नाहटाजी समाज हेतु एक रत्न हो गये हैं। यद्यपि हमलंग अपने को परम्परागत जौहरी बताते हैं, पर ऐसे अनमोल समाज-रश्न का सही मोल ऑक पाना तो सम्भवतः मेरी सामर्थ्य से परे है । उनकी ज्ञानगरिमा हार कर रह गई पर उनकी सहज सरल शालीनता पर किञ्चित भी हावी नहीं हो पाई. इसे भी एक दुर्लभ संयोग मान लेना पड़ेगा हमलोग कर्तव्य मात्र कर रहे हैं. वस्तुतः यह आयोजन यदि प्रतिदिन भी किया जाता रहे उनका अभिनन्दन करके तो भी अल्प ही रहेगा। अभिनन्दन समारोह के शुभावसर पर हम आपके प्रति श्रद्धा के सुमन अर्पित करते हैं । --जयचन्द्र कोठारी, बीकानेर -शैलेश डी० कापडिया, संपादक, जैनमित्र, सूरत स्व० अगरचन्दजी नाहटा से मेरा परिचय था और मैं ३/४ बार सार्वजनिक समारोह के अवसर पर मिला भी । पर श्री भंवरलाल जी नाहटा तो मुझे गुदड़ी में छिपे हुए लाल की तरह प्रतीत होते हैं। पांचवी कक्षा तक पढ़ा हुआ व्यक्ति इतना अप्रतिम प्रतिभा संपन्न कुशाग्र बुद्धि वाला ऐसा बेजोड़ ऐतिहासिक विद्वान एवं धार्मिक वृत्तिवाला होगा. ऐसी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है । Jain Education International ऐसी योग्यता यूनिवर्सिटी के प्रमाण पत्रों से नहीं आयी, बल्कि यह पूर्वोपार्जित संस्कारवश जन्म से ही आयी है। श्री नाहटा जी दिव्य पुरुष दिव्यात्मा ज्ञात होते हैं। - ज्ञानचंद्र जैन, सह संपादक, जैनमित्र सूरत For Private & Personal Use Only [su www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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