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कोई पचास से अधिक वर्ष पूर्व जब मैं हिन्दी मासिक पत्रों को पढ़ने लगा, तब से ही अनेकानेक हस्तलिखित जैन ग्रन्थों तथा अन्य हस्तलिपियों की जानकारीपूर्ण लेखों के लेखक के रूप में श्री अगरचन्दजी के साथ श्री भंवर लालजी नाहटा का भी नाम जुड़ा देखता आया हूँ। राजस्थान से प्रकाशित होने वाले मासिक पत्र-पत्रिकाओं में तो अनिवार्य रूपेण उनके लेख देखने को मिलते रहते हैं। स्वतन्त्र रूप से उन्होंने एकाकी भी बहुत कुछ लिखा और कई ग्रन्थों का सम्पादन किया है। पुनः जनवरी १२, १९८३ ई० को उनके काका श्री अगरचन्द नाहटा के देहान्त के बाद तो यह सारा कार्यभार एकमात्र श्री भंवरलाल नाहटा के ही कन्धों पर आ गया है, जिसे वे पूरी साधना और लगन के साथ निबाह रहे हैं । ईश्वर से प्रार्थना है कि वे उन्हें शतायु करें ताकि शासन की सेवा करते हुए वे भारतीय इतिहास और साहित्य के संरक्षण और अध्ययन-विवेचन के इस कार्य को आगे भी सतत् करते रहें।
-रघुबीरसिंह. सीतामऊ
श्री भंवरलालजी नाहटा का व्यक्तित्व अथाह सागर जैसा है। वे वर्तमान युग के महान दृष्टा, ज्ञाता, विचारक और जीवन-सर्जक हैं। वैसे तो धर्म, अध्यात्म व साधना में ही उनका जीवन प्रवाह है. लेकिन कला. साहित्य, दर्शन में भी वे अनूठे और अद्वितीय हैं। उनका लेखन जीवन की गम्भीर गहराइयों व अनुभूतियों से उद्भुत है।
बीकानेरवासी श्री नाहटा न केवल राजस्थान के गौरव हैं अपितु विश्व के उन गिने-चुने व्यक्तियों में से हैं जिन पर माँ सरस्वती की अनुपम कृपा रही है। किसी स्कूल कॉलेज में नहीं पढ़ने के बावजूद भी उन-सा लिपिज्ञान विरलों को ही नसीब होता है।
स्व० अगरचंदजी नाहटा व श्री भंवरलालजी नाहटा से मेरा परिचय काफी पहले से रहा है। समय-समय पर धार्मिक मसलों पर विचार-विमर्श पत्र व्यवहार होता रहा है। ऐसे महान व्यक्ति के बारे में जितना लिखा जाए थोड़ा है। वय में बड़ा होने के नाते मैं उनके शतायु होने की कामना करता हूँ।
-मानचन्द भंडारी, जोधपुर
महापुरुष श्री भंवरलालजी नाहटा से मेरी मुलाकात कलकत्ता में जब ४ दिन रहना हुआ था तब तीन बार हुई। इसके बाद नाहटाजी अपने परिवार सहित एवं काका श्री अगरचन्दजी नाहटा (प्रसिद्ध पुरुष) सहित प्रतिष्ठा के समय पालीताना पधारे थे । मैं पालिताने में रहता था। तब ३/४ बार दोनों से भेंट हुई। उन्होंने उन्हीं द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकें मुझे भेंट में दों। मैंने श्री भंवरलालजी नाहटा में सादगी, सरलता, गंभीरता, 'विनय, सन्तोष एवं परोपकार भाव और ज्ञान अध्ययन गुण देखे, यह भी देखा कि कोई उनसे प्रश्न करे तो वे निष्पक्षता से सही उत्तर देते हैं।
ज्ञान की विशेषता के साथ-साथ आपश्री व्रतधारी भी हैं। ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक चारित्र. दोनों बातें. एक साथ किन्हीं विरले पुरुषों में ही देखने को मिलती हैं।
-एस० सोहनलाल गोलछा, कटनी
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