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प्राकृत, पाली, संस्कृत, अपभ्रश, बंगला. हिन्दी, राजस्थानी, ब्राह्मी, गुप्त आदि लिपियों के कम्प्युटर भाषाविद्ग को शतशः नमन ! अभिनन्दन ।
-गोविन्द अग्रवाल
वे ज्ञान के कोष हैं, यह बात जितनी सच है उससे अधिक कठोर सत्य यह है कि उनका ज्ञान आच्छादित रहा है। उनकी उपादेय और गरिमामय साहित्य-सेवा एक उपलब्धि है।
जहाँ तक मेरा अनुभव है भाई अगर चन्दजी, भंवरलालजी नाहटा को लोग दो नहीं एक व्यक्ति मानते थे । यह भ्रम तो धीरे-धीरे दूर हुआ।
भाई अगरचन्दजी का नाम लेने से श्री भंवरलालजी का नाम स्वतः आ जाता था और इसी तरह वे एक दूसरे के पूरक थे। लेकिन सत्य यह है कि दोनों ने ही साहित्य की विशेषकर इतिहास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सेवाएं दी हैं।
-पन्नालाल नाहटा. दिल्ली
आधुनिक युग में प्राचीन संतों की-सी भारतीय मनीषा को विश्व के सामने उजागर करने में जिन साधकों के नाम अग्रपंक्ति में सादर प्रतिष्ठित हैं, उनमें श्रद्धेय नाहटा जी का नाम कुछ अधिक आकर्षण के साथ उभर कर आया है। भारतीय वाङमय में आपकी महिमा इसलिये नहीं है कि आप अपने में एक विश्व-कोष हैं बल्कि इसलिए है कि हमारी विजुत सांस्कृतिक विरासत जो कि पांडुलिपियों में कैद है. जिसकी लिपि को जानने वाले नहीं रह गए हैं, को आपने मुक्त किया । ज्ञान का अगाध स्रोत जो अनजाने शिलाखण्डों से रुद्ध रहा. उसे आपने अपनी वज्रवृत्ति से उन्मुक्त किया, सर्व-साधारण के लिये बोधगम्य बनाया ।
-अरुणप्रकाश अवस्थी, कलकत्ता
स्व० अगरचंदजी नाहटा ( आपके काकाजी) एवं आपका समाज के प्रति उपकार का मूल्यांकन करना कठिन है। आप इस वृद्धावस्था में भी साहित्योपासना एवं समाज-सेवा में कार्यरत हैं एवं युवकों के लिये प्रेरणास्रोत हैं।
-धनसुख छाजेड़, डहाणु, महाराष्ट्र
नहीं हटा सो नाहटा, भँवरलाल श्री नाहटा, निज धर्म औ स्वकर्म पे हरदम रहा डंटा। पाया गुरु परसाद, निरंतर करतब रत है, जिन शासन से प्यार व सेवा जिसका व्रत है ।।
-प्यारेलाल मूथा, अमरावती
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