________________
संग्रह में जटमल को गोरा-बादल की कथा की पुरानी प्रति थी ऐसा मालूम पड़ा। अंततः भवरलालजी व पूरणचन्दजी नाहर ने अथक प्रयत्नों से बड़ी दौड़-धूप के बाद रॉयल ऐसियाटिक सोसायटी, बंगाल, के पुस्तकालय में इस पुरानी प्रति को खोज निकाला। इस प्रति के अवलोकन से यह सिद्ध हो गया कि यह रचना गद्य में न होकर पद्य में है। इस भ्रान्ति के निराकरण का अधिकतर श्रेय भंवरलाल जी को जाता है।
श्री भंवरलालजी नाहटा से मेरा परिचय बहुत पुराना है। उस वक्त जब गुणप्रकाशक सज्जनालय, बीकानेर की छत पर साहित्यगोष्ठियां हुआ करती थीं उसमें नाहटाजी (दोनों), नरोत्तमदासजी स्वामी, नाथरामजी खड़गावत आदि प्रख्यात विद्वान् भाग लेते थे। मैं भी यदा-कदा वहाँ जाया करता था। वहीं पर मैंने खड़गावतजी के मुंह से उनकी राजस्थानी रचना लाभूबाबा (नौकर री) सुनी थी। वह बहुत पसंद की गई।
भंवरलालजी में परिश्रम, लगन, निष्ठा जैसे दुर्लभ गुण प्रचुर मात्रा में हैं। इसके साथ-साथ उनमें मानवीय गुणों की भी कोई कमी नहीं है।
आप पर भगवती सरस्वती के साथ-साथ लक्ष्मी का भी वरद हस्त रहा है । साहित्य-सेवा तो आपकी प्रशंसनीय है ही व्यवसाय के क्षेत्र में भी आपने कौशल का परिचय दिया है जो किसी के लिये भी अनुकरणीय है।
-पुरुषोत्तमदास स्वामी, बीकानेर
साहित्य-जगत के अनुपम एवं बहुमुखी विद्वान, सरस्वती के लाडले व पूर्व जन्म के शुभ एवं संचित संस्कारों से ओतप्रोत नाहटाजी पर श्रुतदेवी की अपरंपार कृपा है। न जाने कितने जन्मों की साधना व पुण्यानु धी पुण्य हैं जो सिर्फ एक ही देवी नहीं साथ में लक्ष्मी देवी की भी सतत् कृपादृष्टि है जो कि इस प्रमाण में कठिनाई से दृष्टिगोचर होती हैं । इतनो विद्वता होते हुए भी अहम् प्रहार तो क्या छ भी न सका। शायद ही किसी विज्ञान में इतनी सरलता, स्थिरता उपलब्ध होती है । बिना प्रसिद्धि की आशा, लालसा व कामना किये अडिग हैं। स्वयम् में एक अनुकरण योग्य उदाहरण हैं जिसे समय में नहीं बांधा जा सकता है ।
ऐसी विरल आत्माओं की प्रतिभा-विलक्षणता विज्ञापन-रहित साहित्य-साधना के माध्यम से विश्व में इत्रवत् सर्वत्र प्रसारित हो जाती है, क्योंकि साधना अपने आप में खुशबु है। आपश्री के परिवार वाले भी आपश्री की तरह ही सरल व अहम् रहित हैं ।
-डा० पुष्पा जैन, बम्दई
स्वर्गीय अगरचन्द जी नाहटा सौभाग्यशाली थे कि उन्हें घर में ही एक प्रतिभाशाली एवं अनुपम सहायक व साथी श्री भंवरलाल जी उपलब्ध हो गये।
राजस्थान समाज प्रकाशन समिति के मंत्री के रूप में मैं उनसे दो-तीन वर्ष पहले मिला था। उस समय इनकी पुस्तकों की प्रतियाँ देखी, संपादित पत्रिकायें देखी. और देखा एक सरल व्यक्तित्व के पीछे प्रतिभा संपन्न आत्मा एवं सरस्वती की प्रतिमा ।
[४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org