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________________ विधाओं में मुखरित हुई है। मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला एवं ललितकला में इनको विशेष रुचि है। वस्तुतः ज्ञान को दिशा में भंवरलालजी का हर प्रयास महान है। इन्होंने अपनो साहित्यिक कृतियों, लेखों, निबन्धों और पुरातात्विक गतिविधियों द्वारा विचारों को व्यवस्था, इतिहास को दिशा एवं लिपि को नव नता दी। - भंवरलालजी जैन-धर्म के अनुयायी हैं । भाग्यवश इन्हें मुनि जिनविजय, मुनि कान्तिसागर, कृपाचन्द्रसूरि और सुखसागरजी जैसे महान जैन आचार्यों का सामीप्य प्राप्त हुआ । नाहटा जी जैसी धार्मिक प्रतिभा के लिये यह एक ईश्वरीय वरदान के समान है। फलतः इनके हृदय में धर्म-ज्योति के अंकुर फूरे और इन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व में जैन धर्म को साकार किया। सद्गुरु श्री सहजानन्द जी के प्रति इनकी अगाध भक्ति है । इस प्रकार इनके व्यक्तित्व को ज्ञान के साथ-साथ भक्ति ने भी वैभवशाली बनाया। भंवरलालजी ने जैन-इतिहास के अनेक दुर्बोध रहस्यों को बोधगम्य किया और उनके लिये सटीक प्रमाण भी प्रस्तुत किये। जैन परम्परा से सम्बद्ध किसी भी जटिल प्रश्न को हल करने में नाइटा जी सदैव प्रस्तुत रहते हैं गौरवान्वित है नाहटा परिवार जहाँ ऐसे विद्या-रत्न उत्पन्न हुए जिन्होंने अपने विकास में संस्कार, वातावरण, परिवेश और पूर्वजों के आशीष, सभी को सहयोगी बनाया। -अर्चना त्रिपाठी शोधधात्रा, पांचाल शोध संस्थान, कानपुर ईश्वर श्री नाहटा जी को स्वस्थ एवम् दीर्घ उम्र प्रदान करें ताकि वे राजस्थानी भाषा. साहित्य व संस्कृति की और भी सेवा करते रहे। -रतन शाह मानद मंत्री, राजस्थानी प्रचारिणी सभा. कलकत्ता कलकत्ता संघ अति भाग्यशाली है जिनको श्री नाहटाजी जैसे समाज-सेवी, कर्मठ. अद्वितीय विद्वान व किसी भी लिपि को पढ़ने में सक्षम व्यक्ति प्राप्त है। इतने प्रकांड विद्वान होते हुए भी आपमें जो नम्रता व सहनशीलता विद्यमान है उन विशेषताओं का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। दादा गुरुदेव से बारंबार प्रार्थना है कि आपकी समाज-सेवाओं के भावनाओं को दिन-ब-दिन उन्नत बनाये। -कपूरचंद श्रीमाल, हैदराबाद नाहटा सा०विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। अनेक भाषाओं का आपका विलक्षण ज्ञान आपकी विभिन्न कृतियों से झलकता है। आपका मातृभूमि, मातृभाषा एवं भारतीय वेषभूषा से अटूट लगाव है जो आपकी दिनचर्या से स्पष्टतः परिलक्षित होता है। राजस्थानी भाषा व साहित्य के लिये आपके योगदान को भला कौन भुला सकता है। वेषभूषा व व्यवहार इतना सामान्य है कि प्रायः व्यक्ति आश्चर्यचकित रह जाते हैं इतने उच्च कोटि के विद्वान, तत्त्ववेत्ता [४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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