SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री भंवरलाल जी नाहटा का व्यक्तित्व अपने आप में अनूठा है। वे जैन साहित्य और इतिहास के मर्मज्ञ विद्वान् हैं। इतिहास-खोजबीन के लिए उनकी प्रतिभा का चमत्कार ही माना जा सकता है। असहज गुत्थियों को भी वे सरलता से प्रामाणिक आधार पर सुलझा लेते हैं। यह भी उनकी विशेषता है कि कैसी भी दुलर्भ पांडुलिपि हो उसे पढ़ने व समझने के लिए रात-दिन एक कर देते हैं। और जब तक सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंच जाते विश्राम नहीं लेते। वे बहुत ही मिलनसार तथा सहृदय व्यक्ति हैं। जब भी मैंने उन्हें किसी विषय पर लेख के लिए पत्र लिखा उन्होंने तत्काल उसकी पूत्ति की। उनकी लेखनी सदैव चिन्तनशील रहती है और उनका ज्ञान अगाध है। वे जन्मना व्यवसायी होते हुए भी जेन साहित्य व इतिहास का कितना बड़ा कार्य कर लेते हैं-यह कम आश्चर्य की बात नहीं। उनके अभिनन्दन के अवसर पर मैं कामना करता हूँ कि वे शतायु हों और इसी तरह साहित्य व समाज की सेवा करते रहें। -बाबूलाल जैन, वाराणसी कोई भी देश अपनी भौतिक उपलब्धियों से नहीं. अपने महान पुरुषों के कृतित्व से जीवित रहता है। मेरे हृदय में ऐसे ही महान पुरुष की भावना राजस्थान के बीकानेर निवासी नाहटा बन्धुओं स्व० अगरचन्द एवं श्री भंवरलालजी नाहटा के प्रति प्रस्फुटित होती है । ज्ञानालोक श्री भंवरलालजी नाहटा का सम्मान वस्तुतः ज्ञान-साधना का सम्मान है। जिस प्रकार फूलों की सुगन्ध छिप नहीं सकती. उसी प्रकार भंवरलाल जा की भो प्रतिभा छिपी नहीं रही। एक आदर्श गृहस्थ का जीवन यापन करते हुए भी अपने चाचा स्व० अगरचन्द जी नाहटा के आशीष प्रकाश में उनकी प्रतिभा विकसित होती रही। श्रीभंवरलाल जी के व्यक्तित्व की भव्यता शब्दों की परिधि में नहीं बाँधो जा सकती। इनके व्यक्तित्व के सौन्दर्य की घोषणा तो निःशब्दता ही कर सकती है। इनके जीवन के व्यक्तिगत, सामाजिक, साहित्यिक व आध्यात्मिक सभी पक्षों में अद्भुत सामंजस्य है। ये नितान्त अन्तरमुखी हैं फिर भी इनका सहयोग सामाजिक जीवन में परिव्याप्त है। इनके जीवन का प्रत्येक पहलू प्रेरणाप्रद है। सौभाग्यशाली नाहटा जी अभावों की दुनिया से दूर रहे हैं। लक्ष्मी और सरस्वती दोनों महाशक्तियों की इन पर सहज कृपा है। इसीलिए इनकी क्रियाशीलता को संपीड़न के काले मेघ आच्छादित नहीं कर सके अस्तु सूर्य के समान इनकी प्रतिभा और ज्ञान-रूपी रश्मियाँ प्रकीर्णित होती रहीं। कक्षा पाँच तक पढ़े इस मनीषी ने संसार की समस्त शिक्षण-संस्थाओं की सार्थकता को चुनौती दी है। इनका लिपिज्ञान धन्य है जिसने पुरातत्व अनुसंधान के अनेक आयामों को प्रेत्साहन दिया । ब्राह्मी, कुटिल, गुप्त आदि भारतीय लिपियों की वैज्ञानिक व्याख्या कर इन्होंने अनेक क्लिष्ट प्राचीन शिलालेखों को सहज और बोधगम्य बनाया | प्रकार भारतीय इतिहासाकाश के एक झिलमिलाते हए नक्षत्र हैं श्री भंवरलालजी नाहटा। उनकी स्तत्य रचनाओं के कारण भारतीय इतिहास सदैव इनका ऋणी रहेगा। लिपिज्ञान के साथ ही आपका भाषाज्ञान भी असीम और अद्भुत है। ये प्रायः समस्त भारतीय भाषाओं के ज्ञाता हैं। संस्कृत, प्राकृत, पाली. अपभ्रश, अवहट्टी, बंगाली, गुजराती, राजस्थानी तथा हिन्दी के तो ये पंडित हैं ही साथ ही उच्च-कोटि के कला-मर्मज्ञ भी हैं। इनकी संवेदनशीलता कला की विभिन्न 80.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy