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________________ श्री नाहटाजी के बारे में मेरे लिये कुछ कहना बहुत कठिन है क्योंकि इतने विशाल व्यक्तित्व के सामने हमलोगों का व्यक्तित्व उनके आशीर्वाद में ही है । उनके ७५ जन्म-दिवस के अवसर पर मैं उनकी दीर्घायु, प्रसन्नचित्त सुखी जीवन एवं संचित शक्ति के लिये भगवान से प्रार्थना करता हूँ एवं उनके चरण में अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ । उनका आशीर्वाद हम सबके समाज पर जितना अधिक बना रहेगा उतना ही अधिक हमें मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा। - आनंदकुमार अग्रवाल उप-निदेशक, राजस्थान सरकार सूचना केंद्र, कलकत्ता श्री नाहटाजी ने जैन साहित्य के लिए बहुत सेवा की है। श्री नाहटा जी को बहुत-बहुत बधाई। -मोहनचंद ढढा अध्यक्ष, अखिल भारतीय श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ महासंघ, मद्रास राजस्थानी भाषा और साहित्य को जिन साधकों ने उन्नति के शिखर पर आसीन किया है उनमें बीकानेर का नाहटा परिवार पक्तिय है। पुण्यश्लोक स्व० अगरचंद नाहटा की साहित्य सेवा के साथ भंवरलाल जी की साहित्य सेवा चिरस्तरणीय है। यह सौभाग्य की बात है कि इस परिवार पर लक्ष्मी और सरस्वती की समान कृपा रही है। स्व० अगरचंदजी की साहित्य साधना से सब परिचित हैं। भारत की ऐसी कोई पत्रिका नहीं है जो उनकी साहित्यसर्जना से धन्य न हुई हो किंतु भंवरलाल जी भी उनसे पीछे नहीं रहे। आप जिस कुलपरम्परा में अवतरित हुए उसमें आचरण की पवित्रता, भगवान महावीर की शिक्षाओं का पालन, शास्त्र व्यसन और कर्मठता सदा से श्लाघ्य रही है। आपके पूर्वजों के आवास को 'शुचीनां श्रीमतां गृहें' की विमल संज्ञा से विभूषित किया जा सकता है। Jain Education International स्व० अगरचंद नाहटा की तरह श्री भंवरलाल जी की स्कूली शिक्षा मात्र कक्षा ५ तक हुई थी। किंतु अपने स्वाध्याय जल से निरन्तर सींचकर आपने अपने ज्ञान की परिधि खूब विस्तृत कर ली है। धर्म, साधना, साहित्य, कला, भाषा एवं पुरालिपियों में आपकी विशेष रुचि है । पुरातत्व एवं चित्रकला के आप विशेष विद्वान हैं। प्राचीन एवं देशी भाषाओं में आप विशेष निष्णात हैं। आपके विद्याव्यसन से प्रसन्न होकर पुरातत्व वेत्ता मुनि जिनविजयजी ने आपको आशीर्वाद दिया था और मुनि कान्तिसागर जी आपसे सदा स्नेह करते रहे। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन, प्राच्यविद्याविद्व महामति श्री सुनीतिकुमार चटर्जी, डॉ० सुकुमार सेन, भाषाशास्त्री डॉ० गौरी शंकर हीराचंद ओझा, डॉ० मोतीचंद तथा डॉ० बासुदेव शरण अग्रवाल का आपको निरन्तर साहचर्य मिलता रहा। आपकी रचनाओं की भूमिका, उनका सम्पादन तथा उनमें प्रतिपादित विचारों को देखकर आपकी विद्वत्ता और विचार विश्लेषण क्षमता के प्रति सहज ही आश्चर्य होता है। ऐसा लगता है कि काव्य-मीमांसाकार की यह उक्ति सार्थक है कि प्राक्तनाद्यन संस्कार परिपाकप्रौढ़ा प्रतिभा ही ऋतम्भरा प्रज्ञा होती है जिसे किसी बाह्य उपाधियों या प्रमाण पत्रों की अपेक्षा नहीं होती। ऐसा व्यक्तित्व सदा अक्षय स्रोत से अपना पाथेय जुटाता है। शायद विद्वानों को मेरा यह कथन अतिशयोक्ति लगे कि श्री भंवरलाल नाहटा जैसे विश्रुत मनीषियों के रूप में आज भी प्राचीन ऋषियों या गृहस्थ योगियों की परम्परा जीवित है। -डॉ० रामशंकर द्विवेदी डी० वी० कॉलेज, उरई [ as For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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