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उन्हें राह सम्यक दिखाने के हेतु | हुए अवतीर्ण हैं युग के प्रवर्तक ।। करी दीर्घ साधना गिरि कन्दरा में। आत्मा की ज्योति जगाते-जगाते ||१||
न सोचा था इतनी जल्दी करोगे महाविदेह जाने की तैयारी, पंचमकाल के हम हैं अभागे, पाया न तुमको हे आत्म-विहारी, समता से कष्ट सहे आत्मानंदी, विदेही गुणों में समाते-समाते ।।५।।
-वही, पृष्ठ २३
इन पंक्तियों को पढ़कर प्रतीत होता है कि श्री भंवरलालजी की लेखनी गुरुभक्ति से कितनी ओतप्रोत है एवं गुरु विरह से कितनो व्याकुल। ओर सच ही उनकी इस लेखनी को और जैन दर्शन की भी लेखन-प्रवृत्ति में, उतना 'स्वान्तः सुख' शायद ही मिलेगा जितना गुरुभक्तिपूर्ण आलेखन में । अन्ततोगत्वा गुरुमहिमागान में, वह भी एक अनन्य अनुभूत पुरुष के, जैन दर्शन और शासन की सेवा भी आ ही जाती है। उनकी अन्तर्मुखकामी लेखनी से अब यह अपेक्षा की जाए कि उनके इस जीवन के उत्तरार्द्ध का शेष सारा समय ऐसे विरल सद्गुरु की गुप्त महिमा के प्राकट्य में ही लगे तो वह अनुचित नहीं होगी। ऐसे अनन्य गुरुभक्त से और आशा भी क्या हो सकती है। सर्व परम शक्तियाँ श्री भवरलालजी की लेखनी को ऐसी शक्ति प्रदान करे कि वह एक अद्वितीय एवं चिरंतन गुरुगाथा इस अशांत और आत्मभ्रान्त जगत पर छोड़ जाय ।
-प्रो० प्रतापकुमार टोलिया वर्धमान भारती, बंगलोर
श्री भंवरलालजी नाहटा ने धर्म और भाषा आदि के लिये जो कार्य किया है वह अभिनंदन के योग्य है।
-भंवरमलसिंधी. कलकत्ता
अज्ञात ग्रन्थों की खोज करने वाले समाज-सेवी के अभिनन्दन में मेरा सहयोग अवश्य ही रहेगा। ऐसे विदान को में आशीर्वाद कैसे दू, मैं अपनी शुभकामनाए भेज रहा हूँ कि ईश्वर उन्हें दीर्घायु करें. पूर्ण स्वस्थ रखें ताकि सभी लोगों को उनसे प्रेरणा प्राप्त होती रहे।
-प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका, कलकत्ता
श्री भंवरलालजी नाहटा ने समाज-सेवा, साहित्य-सर्जन, धार्मिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में सराहनीय एवं प्रेरणादायी कार्य किया है। श्री नाहटा के लेखन में भारतीय संस्कृति एवं जैन दर्शन का विश्लेषण (दिग्दर्शन ) एक नई शैली से किया गया है. जो अनूठा एवं अनुपम है ।
-प्रो० बुलाकी दास कल्ला. जयपुर
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