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________________ तिथि के एक अन्य लेख में इसी मंदिर में जिन सागर श्राद्धवरैविहारा।' खरतरगच्छ के कुछ साधु वि० सं० सूरि का नाम दिया है।" ये लेख मूल रूप से मैं देख नहीं १४६२ में आये थे। इनके नाम हैं क्षमामूर्ति, विवेकहंस, सका हूँ किन्तु संभवतः किसी खरतरगच्छ से सम्बन्धित उदयशील, मेरु कुंजर आदि। वि० सं० १४६४ का एक अन्य मंदिर के ये लेख रहे होंगे। जिनभद्रसूरिजी ने जावर में लेख एक खंडित मंदिर के स्तम्भ पर है। लेख बहुत घिस खरतरगच्छ का मंदिर बनवाया था संभवतः ये लेख उसी गया है। इसमें "वि० सं० १४६४ माघ सुदि १३ महावीर मंदिर के खंडहर के हों। चैत्ये . खरतरगच्छे जिनसागर सूरिभिः' पाठ पढ़ा जाता वि० सं० १४७८ के बाद खरतरगच्छ के कई लेख है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि महावीर की प्रतिमा की यहाँ से मिले हैं। वि० सं० १४८६ के लेख में श्री कान्हा प्रतिष्ठा उस समय की गई थी। मूर्ति पर भी लेख है श्रष्ठी द्वारा बनाये वीर विहार में सुपार्श्वनाथ देवक लिका और एक अन्य लघु लेख में श्री जिनकुंजर सूरिभिः नाम की प्रतिष्ठा श्री जिनसागर सूरि (पिप्पलिका शाखा, दिया हुआ है। वि० सं० १४६५ के एक लेख में धर्मघोष खरतरगच्छ) द्वारा कराये जाने का उल्लेख है । लेख इस प्रकार गच्छ के हरिकलश आदि के नाम हैं। वि० सं० ज्येष्ठ है-'संवत् १४८६ फा० श०३ दिने ऊकेश जातीय सा० शु० ५ के एक लेख में रामचन्द्र सूरि का नाम है। पद्मा भार्या पदमादे पुत्र गोइद भार्या गउरदे सुत एक उन्नतिशील नगर होने के कारण बागड़ और सा० आंबा सा० सांगण, सह ऐव, सन्मध्ये सहदेव भायों मेवाड़ के शासकों के मध्य यह विवाद का विषय बना हुआ पोई पुत्र श्रीधर ईसर पुत्री राजि प्रभृति कुटुम्ब पुतेन भं० था। महाराणा कंभा ने इसे जीता था। इसके लेखों कान्हा कारित प्रासारे स्व श्रयोथं श्री सुपाश्व जिनयुत देव में जावर को जीतने का उल्लेख है ( योगिनी पुरम कलिका कारिता प्रतिष्ठिताश्रीखरतरगच्छाधीशेन श्री जिन- जेयमप्यसों योगिनी चरण किंकरो नपः ) राजस्थानी सागर।' इसी मंदिर में वि० सं० १५०४ का एक लेख की गीतगोविन्द की टीका की प्रशस्ति में 'योगिनी भणीये और है। इसमें खरतरगच्छ के जिनभद्रसूर के आम्नाय महामाया तेहनो प्रामाद पाम्बो योगिनीपर जावर पाठ के साधओं के नाम हैं। मूल लेख इस प्रकार है -'संवत् मथा के लिये प्रयुक्त हआ है। ऐमा लगत है कि १५०४ वर्षे कात्तिक वदी १३ दिने श्री जापुर नगरे श्री महाराणा के अन्तिम दिनों में मालवे के सुल्तान मोहम्मद खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसू रिगच्छाधिराजादेशे भं० कान्हेन खिलजी ने ज'वर पर आक्रमण कर यहाँ के देवी के मंदिर कारित श्री वीर-विहारे प० भानुप्रभग ण, समयप्रभगणि को नष्ट कर दिया था। अतः कंभा ने इसे वापस सोमधीर मुनिः अहर्निसं (श) श्री वीर चरणं प्रणमति जीर्णोद्ध र कराया। यहाँ के जैन मंदिरों का भी महत्त्व बहुभक्त्या सूत्रधारी लोंका महावीर चरणाय नमः। अत्यधिक था। वि० सं० १५.०८ में नाडोल में तपागच्छ जिनभद्रसूर ने जावर में मंदिर बनाने के लिए संभ- के रत्नशेखर सूर ने श्रेष्ठी जगसी परिवार द्वारा एक वतः किमी श्रेष्ठी को निर्देश दिये थे। इमका स्पष्ट विशाल प्रतिष्ठा समारोह कराया था। इस अवसर पर प्रतिउल्लेख वि० सं० १४६७ के संभवनाथ मंदिर, जैसलमेर के ष्ठित प्रतिमायें चोपानेर, चित्रकूट, जावर, कायंद्रा, इस लेख में है। यथा 'श्री उज्जयंताचल चित्रकूट मांडव्य नागदा ओसिया, नागोर कंभलगढ़ अदि स्थानों पर भेजी पूर्जावर मुख्यकेषु स्थानेषु येषामुपदेश वाक्या निर्मा पिताः थी। इस प्रकार से भेजी गई प्रतिमाओं में कुंभलगढ़ ५ उपरोक्त, सं० ५.२२। जैन लेख संग्रह, भाग ३ ( पूरणचंद नाहर द्वारा सम्पादित ), लेख सं० २.३० ! ७ लेखक की कृति जेन इन्स्क्रिप्शन्स आफ राजस्थान, पृ० १३१ । ८ उपरोक्त । ९ लेखक की कृति महाराणा कुम्भा, पृ०६८। १° जिन विजय, जैन लेख संग्रह, भाग २, सं० ३७२ । [ ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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