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में नीलकंठ मंदिर के पास छोटे जैन मंदिर में यह मूर्ति इसमें सबसे ऊपर श्री रषबदेव प्रसादातु शब्द होने अब भी विद्यमान है । जावर में भी यह मूर्ति उपलब्ध है। से यह जैनधर्म से सम्बन्धित है। इसमें कई नाम तपागच्छ के रत्नशेखर सूरि से सम्बन्धित सुमति
हैं। यथा देपा, जुपा, नरा, पेयोली, बीरम नाथा, उदा व साधु विवाहलो में एक घटना वर्णित है। इसके अनुसार मंगरा का समस्त संघ का उल्लेख है। उसमें महाराणा जावर के निवासी गणपति शाह के एक पुत्र नयराज हुआ। सांगा का नाम होने से महत्वपूर्ण है। यह अभी अप्रकाशित इसने रत्नशेखर सूरि से दीक्षा ग्रहण की। गुरु गुण रत्नाकर
है। वि० सं० १५६७ का एक लेख बनवीर का भी यहाँ काव्य में भी रत्नशेखर सूरि के जावर पधारने का से मिला है। महाराणा प्रतापसिंह के समय की एक उल्लेख है ( श्री भेद पाट पृथिवीमुकटाभ मज्जा ग्रंथ प्रशस्ति वि० सं० १६४३ की मिली है। इसमें साधु पद्रभिधान नगर समहं समीपुः १०७ श्लोक)।११ उक्त दिन कृत्य की प्रतिलिपि जावर में करने का उल्लेख है विवाहलो में प्रारम्भ में इस नगर का सुन्दर वर्णन है। (संवत् १६४३ वर्षे आश्विन वदि ४ सोमे श्री मेवाड़देशे इसके अनुसार इस नगर में धातु की सात खाने थीं ( सातइ राणा प्रतापसिंह राज्ये श्री जावरमध्ये जीराऊलीया कीका धातु नई आगर)। वि० सं० १७४६ की शील विजय की लिखितं)। अकबर के बाद जहाँगीर ने मेवाड़ में कई तीर्थ माला में भी यहाँ सात धातु की खाने होने का उल्लेख _वर्षों तक निरन्तर आक्रमण किया। उस समय वहाँ के किया हुआ है ( सात धातु तणुअहिठाणं)। सुमति साधु सारे देवालय भग्न कर दिये। मेवाड़ और मुगल सन्धि हो विवाहलो में जावर का प्रारम्भ में जो वर्णन दिया गया
जाने के बाद मेवाड़ के सारे जैन व वैष्णव मन्दिरों का व्यापक उसके अनुसार यहाँ काफी समृद्धि थी। १२ आसपास कई जीर्णोद्धार हुआ था। वि० सं० १६६४ में यहाँ के जैन तालाब बनाये गये थे। इस नगर में कई उल्लेखनीय
मंदिर जीर्णोद्धार का लम्बा लेख है। लेख का कुछ अंश श्रेष्ठी रहते थे एवं अच्छा बाजार था।
इस प्रकार है : 'संवत् १६६४ वर्षे शाके १५६० प्रवर्तमाने महाराणा कुम्भा के बाद महाराणा उदा शासक हुआ ।
वैशाख मासे शक्ल पक्षे तृतीया तिथौ शनिवासरे भेदपाटउसे हटाकर कंभा का दूसरा पुत्र रायमल शासक हुआ। देशे महाराजाधिराज महाराणा श्री जगतसिंहजी विजयराणो रायमल ने जावर अपनी बहिन रमाबाई को जागीर में कुमर श्री राजसिंह आदेशात योगिनीपुर वरे श्री शांतिनाथ दिया था। इसका विवाह गिरिनार के शासक चूड़ा बिंब स्थापित य उधरी मोहण-सुत वीर जी पंचोली सवराम, समा राजा मंडलीक के साथ हुआ था। इसके मोहम्मद दोसी सुजा तेलहरा धनजी सा० पंचाइण सा समरथ बेगड़ा से हारने के बाद मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लेने से सा दशरथ मुंजावत महता केसर महता लधु चोखा उतवेला रमाबाई मेवाड़ में आ गई थी तब उसे जावर दिया था। यहाँ धना भा० साम पोरवाड समस्तसंघ उधरी मोहण प्रसाद से वि० सं० १५५४ का एक विस्तृत शिलालेख मिला है ।१३ उधराण कृतं प्रतिमा स्थापिता संघ पूजा कृत सलावट इसके अनसार इसने कंभलगढ में दामोदर मंदिर, एक ताजु चद...' वि० सं० १७२८ में जावर निवासी पंडित सरोवर एवं जावर में रमा स्वामी का मंदिर बनाया था।
चतुराजी जो माड़ाहड़गच्छ के थे आबू में यात्राकर वहाँ जावर के निवासी ओसवाल सूरा ने नाणा ( गोड़
लेख भी उत्कीर्ण कराया; संवत १७२८ वर्षे वैशाख सुदि
११ दिने मड़ाहड़गच्छे पंडित चतरा जी यात्रा सफल वास वाड़) में पार्श्वनाथ की मूर्ति वि० सं० १५७२ में . स्थापित की थी। जावर में वि० सं० १५८० की १२वें
जावर । किताबों की एक सुरह है जो काफी घिमी हुई है। बहुचर्चित गीत गोविन्द की सचित्र प्रति की प्रतिलिपि ११ गुरु गुण रत्नाकर, श्लोक १०१। १२ सुमति साधु विवाहलो की एक नकल स्व० अगरचंदजी नाहटा ने मुझे भिजवाई थी। यह वर्णन उसी के अनुसार है । १३ जावर का अभिलेख इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली, वि० सं० १६५८, पृ० २१५-२२५ पर प्रकाशित है। वीर
विनोद के पहले भाग में भी इसका मुल पाठ उपलब्ध है ।
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