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कर्ता के सम्बन्ध में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है। अतः अभी इस रचना को अज्ञातकतृक ही मानना होगा। आरामसोहाकहा की परम्परा एवं अन्य पाण्डुलिपियों के सम्बन्ध में विचार करने के पूर्व इस कथा को संक्षेप में प्रस्तुत करना उपयोगी होगा।
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कथा वस्तु
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुशात देश है। वहाँ के बलासक नामक ग्राम में अग्निशर्मा नामक ब्राह्मण रहता
था। उसके ज्वलनशिखा नामक पत्नी थी। उनके विद्यत्प्रभा अप्रकाशित आरामसोहाकहा
नामक पुत्री थी। जब वह आठ वर्ष की थी तभी
किसी रोग से पीड़ित होकर उसकी मां का देहावसान हो (पद्य) : एक परिचय गया। तब घर का सारा काम विद्युत्प्रभा के ऊपर आ
पड़ा। गायों को चराने, घर का काम करने और पिता -डॉ० प्रेम सुमन जैन
की सेवा-टहल करने में वह बहुत थक जाती थी। अतः सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर
एकदिन उसने पिता से कह दिया कि वह दूसरी शादी
करके पत्नी ले आवे। इससे उसे घर के कामों से छुटकारा प्राकृत कथा साहित्य में आरामशोभाकथा एक
तो मिलेगा। किन्तु विद्यत्प्रभा की जो सौतेली मां आयी महत्वपूर्ण लौकिक कथा है। जिनपूजा के महात्म्य को
वह इतनी आलसी और कुटिल थी कि विद्युत्प्रभा को प्रतिपादित करने के उद्देश्य से यह कथा उदाहरण के रूप
पहले जैसा ही घर-बाहर के कार्यों में अकेले जुटना पड़ता में कही गयी है। प्राकृत, संस्कृत, गुजराती एवं हिन्दी
था। इसे वह अपने कर्मों का फल मानती हुई सहन करने भाषा में आरामशोभाकथा को कई कथाकारों ने प्रस्तुत
लगी। किया है। किन्तु मूल प्राकृत कथा अभी तक स्वतंत्र रूप से प्रकाशित नहीं हो सकी है। इस अप्रकाशित आराम
एकबार विद्यत्प्रभा जब गायों को चरा रही थी तो सोहाकहा की पाण्ड लिपि मुझे लालभाई दलपतभाई भार- वहाँ उसने एक सांप रूपी देवता की प्राण रक्षा की। इससे तीय संस्कृति मंदिर, अहमदाबाद के ग्रन्थभण्डार का प्रसन्न होकर उस नागदेवता ने उसे वरदान दिया कि सर्वेक्षण करते समय २-३ वर्ष पूर्व प्राप्त हुई थी। प्राकृत उसके सिर पर एक हरा-भरा कुंज ( आराम ) सदेव बना गाथाओं में निबद्ध इस कथा की यह अभी तक उपलब्ध रहेगा, जिससे उसे कभी धूप नहीं लगेगी। यह कंज एकमात्र पाण्डुलिपि है। यद्यपि इस कथा की अन्य प्रतियां आवश्यकतानुसार छोटा-बड़ा होता रहता था। एकदिन विभिन्न ग्रन्थभण्डारों में प्राप्त होने के संकेत है, किन्तु पाटलीपुत्र के राजा जितशत्रु ने विद्यत्प्रभा के साहस और अभी वे उपलब्ध नहीं हो सकी हैं।
कंज से प्रभावित होकर उसे अपनी पटरानी बना लिया । ___ आरामसोहाकहा की इस पाण्डुलिपि में कुल १० पन्ने
विद्यत्प्रभा को वह आरामशोभा के नाम से पुकारने लगा। हैं, जो दोनों ओर लिखे हैं। इसमें कुल ३२० प्राकृत।
उनके दिन सुख से व्यतीत होने लगे। गाथाएं हैं। किन्तु आदि-अन्त में कोई प्रशस्ति नहीं है। इधर आरामशोभा की सौतेली मां के एक पुत्री अतः रचनाकार, लिपिकार आदि के सम्बन्ध में कुछ भी उत्पन्न हुई। उसके जवान होने पर उस सौतेली मां ने ज्ञात नहीं होता है। प्राकृत साहित्य के अन्य किसी ग्रन्थ चाहा कि जितशत्रु राजा आरामशोभा के स्थान पर उसकी में भी प्राकृत पद्यों में रचित आरामसोहाकहा एवं उसके पुत्री को पटरानी बना ले। अतः उसने गर्भवती आराम
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