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शोभा को अपने घर बुलाया और उसके पुत्र के जन्म हो मणिभद्र सेठ के एक बगीचा था जो सिंचे जाने जाने पर उसे एक कँए में डाल दिया और उस पुत्र के पर भी सूखता जा रहा था। इससे वह सेठ बहुत दुःखी साथ अपनी पुत्री को आरामशोभा बनाकर राजा के पास था। तब कुलधर की पुत्री ने चार प्रकार के आहारमात्र भिजवा दिया। राजा को नकली आरामशोभा पर शक का व्रत लेकर शासन देवी की पूजा की। उसकी तपस्या जरूर हुआ किन्तु पुत्र की प्रसन्नता में उसने विशेष ध्यान के फल से वह सूखता हुआ बगीचा फिर से हरा-भरा हो. नहीं दिया।
गया । इससे प्रसन्न होकर सेठ ने उस पुत्री को बहुत-सा धन असली आरामशोभा को अपने पुत्र को देखने की पुरस्कार में दिया। उस पुत्री ने उस धन से जिन प्रतिमा बड़ी इच्छा हुई तो उसने उसी नागदेवता को स्मरण के ऊपर तीन छत्र और मुकुट आदि बनवा दिये तथा किया। नाग देवता की कृपा से वह पुत्र का दर्शन करने मन्दिर में रथ इत्यादि का दान दिया। इस प्रकार धार्मिक रात्रि में जाने लगी। किन्तु सूर्योदय के पूर्व उसे वापिस कार्य करते हुए वह पुत्री मरणोपरान्त स्वर्ग में देवता हुई। लौटना पड़ता था। एक दिन राजा ने असली आरामशोभा देवता के भोगों को भोगकर वह विद्यत्प्रभा के रूप में को पकड़ लिया और वापिस नहीं आने दिया। तब से उत्पन्न हुई। पूर्वजन्म के बचपन में धर्म न करने के कारण उसके सिर से वह कुज गायब हो गया। किन्तु आराम- वह विद्युतप्रभा बचपन में दुःखी हुई, जिनप्रतिमा पर छत्र शोभा को पुनः अपना पद और गौरव प्राप्त हो गया। प्रदान करने से उसे सिर पर कुंज की शोभा प्राप्त हुई और उसने अपनी सौतेली माँ और बहिन को भी क्षमा कर तपश्चरण आदि करने के कारण उसे राज्य-सुख प्राप्त हुआ । दिया।
मुनि के द्वारा इस प्रकार अपना पूर्वजन्म वृत्तान्त सुनकर एकदिन आरामशोभा राजा के साथ वीरभद्र मुनि आरामशोभा ने पति के साथ वैराग्य धारण कर तपश्चरण के समीप गई। वहाँ उसने अपने पूर्वजन्म के सम्बन्ध में किया एवं सद्गति प्राप्त की। उनसे पछा कि मेरे ऊपर छत्र के आकार का कुंज क्यों कथा की लोकप्रियता स्थित हुआ और मुझे पहले दुःख और बाद में सुख क्यों
आरामशोभा कथा जेन कथाकारों को बहुत प्रिय रही प्राप्त हुए ? मुनिराज ने उसके पूर्वजन्म की कथा कही।
है। अतः प्राकृत, संस्कृत एवं गुजराती भाषाओं में इसके चम्पा नगरी में कुलधर वणिक रहता था। उसके आठ कई संस्करण प्राप्त होते हैं। उनकी संक्षिप्त जानकारी यहाँ पुत्रियाँ थीं। सात की तो अच्छे घरों में शादियाँ हो गयी
प्रस्तुत की जा रही है। थीं किन्तु आठवीं पुत्री पुण्य-रहित होने के कारण अविवाहित थी। तभी उस नगर में नन्दन नामक एक वणिक- प्राकृत सस्करण पुत्र आया। कुलधर ने उससे अपनी आठवीं पुत्री का विवाह (१) अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार आचार्य कर दिया और उसके साथ उसे दक्षिण भारत भेज श्री प्रद्युम्नसूरिकृत मूलशुद्धिप्रकरण पर श्री देवचन्द्रसूरि दिया किन्तु वह नन्दन वणिक रास्ते में ही अपनी पत्नी द्वारा लिखित वृत्ति में सर्वप्रथम तीर्थङ्कर भक्ति के उदाहरण को छोड़कर चला गया।
रूप में आरामशोभा कथा प्राकृत गद्य एवं पद्य में प्रस्तुत वह कुलधर की पुत्री भटकती हुई दूसरे नगर में पहुँच
की गयी है। आरामशोभा के पुनः पटरानी पद प्राप्त कर मणिभद्र सेठ के घर कार्य करने लगी। मणिभद्र उसे करने की कथा तक प्राकृत गद्य एवं पद्य का प्रयोग किया पुत्री की भाँति रखने लगा। एकबार जब मणिभद्र सेठ गया है एवं उसके बाद पूर्वजन्म की कथा केवल गाथाओं ने अपने यहाँ एक जिनमन्दिर बनवाया तब वह कुलधर
कार
में कही गया है। कथा इस प्रकार
में कही गयी है। कथा इस प्रकार प्रारम्भ होती है । की पुत्री वहाँ विनयपूर्वक जिनभक्ति करने लगी। उस तत्थ य परिस्सम किलंतनर-नारी हिययं व बहुमासं,
१ भोजक, अमृतलाल (सं०), मूलशुद्धिप्रकरण (प्रथम भाग), अहमदाबाद, १६७१, पृ० २२-३४ ।
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