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तैओ सादा सरल अने निराभिमानी कोई वस्तु के मत ना आग्रही नहि सदा स्वस्थ अने उदारचित्त जनाय । ।
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कोई नी भूल होय तो ते सूरत जती करी दे। कोई पण प्रकार नो पूर्वाग्रह राखे नहि
औपचारिकता ना पण
आग्रही नहिं अमनी हाजरी मां सतत वात्सल्य अनुभवाय
खंभात मुकामे छट्टो जैन साहित्य समारोह योजायो त्यारे प्रमुख तरीके श्री भंवरलाल नाहटा पधाय हता । ए वखते एमता सतत सान्निध्यमां रहेवानुं सद्भाग्य सांपड्य हतुं । ते पहेलां शिखरजी मां क्षत्रियकुंड विषे योजाएली विद्वत् परिपद मां पग तेननो साथै रहेनुं वन्युं हतुं आ ने प्रसंगे मोटा माणसो पण केटला सादा अने सरल होय । छे तनो प्रत्यक्ष स्वानुभव श्री नाहटाजी नी बाबत मांथघो हतो ।
एमनी लघु पद्य रचनाओं धर्मं मर्म युक्त अने तत्व ज्ञान थी
श्री भँवरलाल नाहटा अच्छा कविपण छे गर्भित होय छे ।
श्री भँवरलाल नाहटा ७५ वर्ग प्रवेश करे छे। ए आपणा सौना माटे आनंद अने गौरव नो प्रसंग छे ए प्रसंगे हूं अमनुं अभिवादन करू छं अने तेओ शतायु थाय तथा जैन शास्त्र नी उज्ज्वल सेवा करे ओवी अन्तर नो अभिलाषा व्यक्त करू छु ।
-डॉ० रमणलाल ची० शाह अध्यक्ष, गुजराती विभाग, बम्बई विश्वविद्यालय
एक समस्वभावी सहधर्मी के नाते, एक गुगज्ञ विद्वत् पुरुष के नाते एवं सबसे अधिक एक परम आत्मीय 'गुरु बंधु के नाते श्रीयुत् भंवरलालजी नाहटा से हमारा अंतरंग सम्बन्ध कई वर्षों से रहा है. उनके दिवंगत विद्वत्वर्य चाचा स्व० अगरचन्दजी के ही समान स्तर पर हमारा परम पावन सम्पर्क- आधार रहा है सद्गुरु देव श्री योगीन्द्र युग-प्रधान श्री सहजानन्दघनजी का जीवन और साहित्य |
वैसे तो समग्र नाहटा परिवार की हमारे परमोपकारक गुरुदेव के प्रति अनन्य निष्ठा और समर्पण युक्त भक्तिभावना रही है, परन्तु अपनी अन्य व्यावसायिक से इस विद्वत्-द्वय श्री भंवरलालजी एवं स्वर्गीय अनुमोदनीय एवं परम उपादेय है । इन श्री सहजानन्दघनजी के साहित्य के लिये भी है। दीर्घकाल से जो धन्य सद्गुरु परिचय पाया है, रूप से सफल रहे हैं। क्या 'कुशल निर्देश' गुरुभक्ति-लसित लेखनी ने एक गुप्त रहे हुए
साहित्यिक एवं जैन दार्शनिक धार्मिक प्रवृत्तियों के मध्य से भी ध्रुवरूप अगरचन्दजी की जो गुरुभक्ति की धारा बहती रही है वह विरल, दोनों का प्रदान जितना जैन साहित्य को है उतना ही गुरुदेव सत्संग एवं प्रत्यक्ष निश्रा सेवा भक्ति के द्वारा श्री भंवरलाल जी ने उसे अनेक रूपों में बृहत् जगत तक पहुँचाने में वे बड़े सार्थक क्या 'सहजानन्द सुधा' क्या 'जीवनी' अनेक रूपों में श्री भंवरलालजी को युग-पुरुष को सत्यशोधक जनों के मानस पटल पर खड़ा कर दिया है।
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आज का जगत एवं वर्तमान काल कितना विक्षुब्ध, विच्छिन्न, विशृंखलित एवं अशांत है। क्षुब्धता छिन्न-भिन्नता एवं अशांति के बीच वास्तविक शान्ति और समाधि का अन्तपंथ युग पुरुष जी की, समर्पित शिशुभाव से अंगुलि पकड़कर स्वानुभूति द्वारा योगीन्द्र युग-प्रधान गुरुदेव श्री सहजानन्दघनजीने दृढ़
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युग की इस श्रीमद राजचन्द्र
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