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________________ प्रतिभा के धनी पंडित जी किसी विद्यालय या विश्वविद्यालय की शैक्षणिक उपाधियों से अलंकृत भले न हों परंतु विश्वविद्यालय के पंडितों के लिये अधिकारी विद्वान अवश्य हैं। तत्र भवान् आचार्यों की श्रेणी में पांक्तेय मदरलालजी के विलक्षण भाषाज्ञान, लिपिज्ञान, पुरावशेष की पहचान का ज्ञान का प्रातिम वैदुष्य, ततोऽधिक प्रशंसाह है। जैन साहित्य और इतिहास के सन्दर्भ में तो उनके प्रत्येक शब्द प्रामाणिक संदर्भ सिद्ध होते हैं । विद्वान और देवता किसी जाति-धर्म सम्प्रदाय की सीमाओं में नहीं बंधते । पंडित श्री भंवरलाल जी नाहटा न केवल जैन समाज के बल्कि सम्पूर्ण इतिहास और साहित्य जगत के अध्येताओं के नमस्य विद्वान हैं । सारस्वत क्षितिज के इन ज्योतिपुंज प्रगम्य पुरुष को, उनकी ७५वीं जन्मतिथि पर मेरा कोटिशः प्रणाम निवेदित है। —डा० श्यामानन्द प्रसाद रीडर, के० के० एम० कालेज, जमुई, बिहार पू० श्री भंवरलाल नाहटा जो साथे नो मारो परिचय लगभग पंदरेक वर्ष थी छ । परन्तु छल्ला बे-त्रण वर्ष थी तेमनी साथे वधु निकट ना परिचय मां आववानुं सद्भाग्य सांपड्य छ। मध्यकालीन जैन साहित्य ना संशोधन-संपादन नी प्रवृत्तिना कारणे लगभग त्रण दायका थी हुं स्व० अगरचंदजी नाहटा ना सतत संपर्क मां हतो । पू० अगरचन्द जी नाहटा ए न्यारे पोताना भतिजा श्री भंवरलाल नाहटा नो परोक्ष परिचय कर वेलो । श्री अगरचन्दजी नाहटाए तो पोतार्नु समग जीवन जैन साहित्य समर्पित करी दीधुं हतुं-दिवस रात तेओ लेखन संशोधन नी प्रवृत्ति मां रोकायेला रहेता, परन्तु श्री भंवरलाल नाहटा तो व्यवसा मां पण समय आपता अने लेखन वांचन मां पण समय आपता रह्या छ । केटलाक वर्ष पहेला "मृगावती चरित्र चौपाई" ना संपादन अंगे श्री भंवरलाल नाहटा मुंबईमां अमारा घरे मलवा । पधार्या त्य रे तेमनी विद्वता थी हु बहु प्रभावित थयो हतो, राजस्थानी पहेरवेश अने माथे बीकानेरी केसरी साफो धारण कर्यो होय अवी व्यक्ति ने रस्ता मां चाली जती जोई ने कोई ने ख्याल न आवे के एमनी विद्वता केटली हो। श्री भंवरलाल नाहटा ना संपर्क मां जेम जेम अववानुं थयु तेम तेम एमनी विद्वत् प्रतिभा नो विशेष परिचय थतो गयो । जैन साहित्य नी सैंकड़ो पंक्तियों एमने कंठस्थ छे। वली ग्रन्थों मां ना सन्दर्भो नी तथा ऐतिहासिक बाबतो नी सरस जानकारी तेओ धरावे छे। संस्कृत, प्राकृत अने जूनी राजस्थानी भाषा न तेओ सारा मर्मज्ञ छ। अनेक पारिभाषिक शब्दोना अर्थ तेओ जागे छे । तेमनी विचार धारा पुरन्त, प्रमाणयुक्त अने स्पष्ट छ। स्तवनों अने सज्झायो ने बुलंद कंठे गवानी तेमनी रुचि अने शक्ति पण मुग्ध करे तेवी छे। वली तेमना हस्ताक्षर पण सरस, सुवाच्य अने मरोड़दार छे । हस्तप्रत उपरथी तेओ मोती ना दाणा जेवा अक्षरे नकल उतारे, परन्तु सेंकड़ो पंक्तिओ मां एक अक्षर नी पण छेक छाल जीवा न मले। प्रथम दृष्टिए ज प्रसन्न धवाय एवं एमर्नु लखाण होय छ। मध्यकालीन जैन साहित्य माटे स्व० अगरचंद जी नाहटा न अवसान पछी मारे जो कोई पूधवा योग्य मुख्य व्यक्ति होय ते ते श्री भंवरलाल नाहटा छ। एमनी साथे बे एक कृतिओर्नु सह-संपादन पण में कर्यु छे । आटली बधी विद्वत्ता अने उभरे मारा पिता तुल्य एवा श्री भंवरलाल नाहटा ज्यारे मले त्यारे एक मित्र अने मार्ग दर्शक जेवा लागे। एमनी उपस्थिति मां हमेशा प्रसन्नता, पवित्रता अने प्रेरकता अनुभवाय । पहेरवेश अने प्रकृति बने मां [ ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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