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नाहटा जी की रूचि साहित्य और इतिहास तक ही सीमित नहीं है । पुरातत्त्व. चित्रकला और सर्जनात्मक साहित्य में भी आपने गहरी रूचि ली है। जहाँ एक ओर आपने हस्तलिखित ग्रन्थों के माध्यम से कई अघते. अज्ञात सन्दर्भ साहित्य-संसार के समक्ष प्रस्तुत किये हैं वहीं विस्मृति की परतों से जुड़े अनेक शिलालेखों को संग्रहित प्रकाशित कर भारतीय संस्कृति के विविध पहलुओं को उद्गटित किया है। चित्रकला एवं काव्यकला के क्षेत्र में भी आपका महती योगदान है। आपकी काव्य-सृजन का धरातल मूलतः अध्यात्म-प्रधान है। उसमें आत्मदर्शन एवं परमात्मा-दर्शन की विशिष्ट घटा है। राजस्थानी भाषा में लिखी गई आपकी कहानियाँ, रेखांकित और संस्मरण बड़े रोचक, प्रेरणादायी और मार्मिक बन पड़े हैं । इनमें घरेलुपन और मिठास के साथ व्यापक जीवन अनुभव संचित है।
व्यापारिक एवं साहित्यिक व्यक्तित्व के साथ-साथ आपका सामाजिक एवं धार्मिक व्यक्तित्व भी प्रभावपूर्ण है । आप अनेक धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हैं। 'कुशल निर्देश' के सम्पादक के रूप में आप सम-सामयिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना को प्रबुद्ध करने में प्रभावकारी भूमिका निभा रहे हैं। समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति आप कड़ा प्रहार करते हैं । आपकी वाणो और लेखनी में ओज और तेज है। गत वर्ष जनवरी १९८४ में जैन विद्यालय, कलकत्ता, के स्वर्ण जयन्ती महोत्सव पर अ० मा० जैन विद्वत् परिषद के तत्त्वावधान में आयोजित अ०भा० जैन पत्रकारिता संगोष्ठी में आपने जैन पत्रकारिता और पत्रकारों की भूमिका और दायित्व पर जो समीक्षात्मक विचार प्रकट किये थे. वे बड़े उत्प्रेरक थे। उनसे उनके जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव प्रगट हुए थे।
श्री नाहटा जी के हृदय में प्राचीन साहित्य और विशेषकर जैन साहित्य और संस्कृति की अमोल विरासत को सही परिप्रेक्ष्य में विश्व के सामने प्रस्तुत करने की अगाध निष्ठा और तड़प है। फरवरी १९८५ में श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई व खंभात तालुका सार्वजनिक केलवगी मंडल के तत्वावधान में खंभात में आयोजित छठे जैन साहित्य समारोह के प्रमुख पद से बोलते हुए आपने साहित्यकारों एवं अध्येताओं को एकजुट होकर मनोयोगपूर्वक कार्य करने का जो आह्वान किया, वह आपके सतत् साधनाशील. जागरूक, कर्मठ जीवन का उद्घोष था।
नाहटा जी से मुझे कई बार मिलने का अवसर मिला। मैंने उन्हें सदैव विनम्र, सहज और व्यस्त पाया । आप यश-लिप्सा, पूजा-प्रतिष्ठा और मान-सम्मान से कोसों दूर हैं | 'नच्चा नमई मेहावी' अर्थात् मेधावी पुरुष नम्र होता है। यह उक्ति नाहटा जी के व्यक्तित्व पर चरितार्थ होती है। नाहटा जी की प्रतिभा नव-नवोन्मेषशालिनी है। शब्द और अर्थ के सम्बन्धों को पकड़ने में आप सिद्धहस्त हैं । प्राचीन ग्रन्थों के अर्थ-विश्लेषण में आपकी मौलिक मेधा-शक्ति प्रगट हुई है। ७५ वर्ष की अवस्था में भी आप साहित्य-साधना में पूरे जोश-खरोश के साथ तल्लीन हैं । किसी तरह का प्रमाद और आलस नहीं है। 'नाणी नो पमायए' आचारांग की यह सूक्ति 'ज्ञानी कमी प्रमाद नहीं करता नाहटा जी पर लागू होती है ।
-डा० नरेन्द्र भानावत मंत्री, अखिल भारतीय विद्वत् परिषद, जयपुर
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