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आश्चर्य को देखकर चक्षुपाठी नाहटा जी ने कहा मंदरलालजी जिसने मुझसे आयु में छोटे हैं उतने ही ज्ञान और साहित्य-साधना में वृद्ध है। बात आज प्रमाणित हो गई है। पिछले दिनों इस महारथी से मेरा पत्राचार हुआ। पहली बार पत्राचार में कोई औपचारिकता नहीं । तुरन्त उत्तर । वे शतायु हों और सहस्रवर्षीय आयु जीवें साहित्यायु की ।
आधुनिक काल के द्विवेदी युगीन कवियों में जिस प्रकार श्री मैथिली शरण गुप्त और सियारामशरण गुप्त, गुलबन्धु के रूप में प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार प्राचीन भाषा और साहित्य के अनुसंधान अनुशीलन में भी अगरचन्द नाहटा एवं भंवरलाल नाहटा, नाहटा बन्धु के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं। ये पारिवारिक रिश्ते की दृष्टि से काका भतीजे हैं। आ० अगरचन्द नाहटा पार्थिव रूप से अब इस संसार में नहीं हैं पर प्राचीन भाषा, साहित्य, इतिहास, कला और पुरातत्त्व के क्षेत्र में शोध सर्वेक्षण की जो लौ उन्होने प्रज्ज्वलित की, उसे उनके भतीजे श्री भंवरलालजी नाहटा ७५ वर्ष की अवस्था में भी पूरी निष्ठा और सजगता के साथ अमंद किये हुए हैं। बीकानेर स्थित श्री अभय जैन ग्रन्थालय प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों और कलात्मक नमूनों की तीर्थ भूमि है। इसे नाहटा बन्धुओं ने अपने तन, मन, धन से समृद्ध किया है। इसी तीर्थ-भूमि में आज से लगभग ३२-३३ वर्ष पूर्व मेरा नाहटा बंधुओं से परिचय और संपर्क हुआ था। तब से आज तक किसी न किसी रूप में मेरे साहित्यिक संबंध उनसे और इस तीर्थ भूमि से बने हुए हैं।
-डा० महेन्द्रसागर प्रचंडिया, अलीगढ़
श्री भंवरलालजी नाहटा बुहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। एक ओर आपमें मारवाड़ी सेठ और कुशल व्यापारी की प्रबंध संचालन क्षमता, प्रामाणिकता, लगन, व्यावहारिकता, परिश्रमशीलता है तो दूसरी ओर एक सिद्धहस्त अनुसंधाता को तथ्य भेदिनी दृष्टि और सूक्ष्म पकड़ है । अपने पहनावे, रहन-सहन, चाल-ढाल और वाणी व्यवहार में आप ठेठ राजस्थानी संस्कृति के प्रतीक हैं ।
कुशल व्यापारी होने के कारण आप सुख-समृद्धि रूप लक्ष्मी के उपासक तो हैं ही । कलकत्ता को केन्द्र बनाकर आप अपने विभिन्न व्यापारिक प्रतिष्ठानों का संचालन करते हैं। व्यापारिक प्रबंध कौशल और संग्रह-संचय वृत्ति का सदुपयोग आपने ज्ञान स्वरूपा लक्ष्मी के सात्विक रूप की उपासना में भी किया। आपका यह अभिनन्दन आपके इसी उपासक स्वरूप का अभिनन्दन है।
नाहटा जी बहुश्रुत और बहुभाषाविद् हैं। संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश बंगला, राजस्थानी, गुजराती, हिन्दी आदि भाषाओं पर आपका अच्छा अधिकार है। भाषाशास्त्र के साथ-साथ आप लिपि-विज्ञानवेत्ता भी हैं। । प्राचीन ब्राह्मी और कुटिल लिपि के आप विशेष अध्येता और अर्थ विवेचक हैं। आपका अध्ययन विशाल और गंभीर है। प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों के संग्रह, संपादन और अर्थ- विवेचना में आपने जीवन का अधिकांश समय समर्पित किया है। आपके द्वारा जैन साहित्य-कृतियों का संपादन हुआ है, विषय व शैली की दृष्टि से वे वैविध्यपूर्ण हैं । धर्म, दर्शन, इतिहास, साहित्य काव्य रूप लोकाचार की दृष्टि से उनका विशेष महत्त्व है । आपके द्वारा प्रकाश में लायी गयी कृतियों न केवल हिन्दी साहित्य के इतिहास में नवीन तथ्यों का उद्घाटन करती हैं वरन् साहित्यिक प्रवृत्तियों को नया मोड़ भी देती हैं। उनके द्वारा इतिहास, घटनाओं और पात्रों पर नया प्रकाश पड़ा है।
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