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हैं। प्राचीन लिपियों का ज्ञान, व्याकरण एवं साहित्य में वैदुष्य तथा प्राचीन रचनाओं की पृष्ठभूमि की पकड़-इन गुणों के कारण श्री भंवरलाल जी को अपनी साहित्यिक साधना में वड़ा लाभ मिला । संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, हिन्दी,
और राजस्थानी के साथ उन्होंने दंगला. गुजराती आदि अन्य कई वर्तमान भारतीय भाषाओं में दक्षता प्राप्त की। इससे अनेक भाषात्मक, साहित्यिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाने में तथा तुलनात्मक अध्ययन में उन्हें बड़ी सहायता मिली।
माँ भारती के एक महान् पुत्र श्री भंवरलाल जी नाहटा शतायु हों और साहित्य को भविष्य में नयी कृतियों से अलंकृत करते रहें, यही मेरी कामना है ।
-डा० कृष्णदत्त वाजपेयी सागर विश्वविद्यालय, सगर, मध्य प्रदेश
श्री भंवरलाल जी नाहटा जैन साहित्य, इतिहास तथा प्राचीन लिपि के विद्वान हैं। विद्वान किसी विद्यालय या पाठशाला में पढ़ कर नहीं वने, यह उनकी विशेषता है। वर्षों इस दिशा में कार्य करने से अनुभवी जैन-साहित्य के ज्ञाता बन गये। दीर्घकाल तक आप जैन साहित्य, इतिहासों और लिपि की विशेष सेवा करते रहें यही शुभ कामना है।
-गुलाबचन्द जैन, दिल्ली
श्री नाहटाजी साहित्य-साधना की विरल विभूति हैं। महापंडित किन्तु अत्यन्त विनम्र स्वभाव वाले श्री नाहटाजी भाषा एवम् लिपि के अतिरिक्त पुरातन मूर्ति एवम् चित्रकला के भी पारखी हैं। साहित्य की विविध विधाओं में आपने काफी लिखा है। सरस्वती के ऐसे वरद् पुत्र का अभिनन्दन करना हमारा कर्तव्य है। मैं व्यक्तिगत एवम् भारत जैन महामण्डल परिवार की ओर से श्री नाहटाजी के अमृत महोत्सव पर हार्दिक शुभकामना करता हूं कि वे इसी प्रकार युगों-युगों तक साहित्य सेवा करते रहें।
-चंदनमल चाँद मंत्री, भारत जैन महामण्डल, बम्बई
श्री भंवरलालजी नाहटा साहित्य के वातायन से मेरे परिचय में आए और जीवन का वह क्षण बड़े मूल्य का रहा है जब मैं आज से लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व आदरणीय प्रिय भाई अगरचन्द जी नाहटा के पास बीकानेर अपने एक शोधार्थी के साथ हाजिर हुआ। मुनि शलजी भी श्रावकी वेश में मौजूद थे। एक साधारण साहित्यिक गोष्ठी का भी आयोजन हुआ था। तब कदाचित परिचय कराते हुए मेरे स्थायी भ्रम का निवारण किया था नाहटा जी ने। वोले आप हैं श्री भंवरलालजी नाहटा, मेरे भतीजे । लगभग समवयस्क-से मिलते-जुलते व्यक्तित्व के सुधी साहित्यिक साधक भाई भंवरलालजी को साक्षात् देखकर मैं दंग रह गया । भतीजा और वह भी समवयस्क । मेरे
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