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________________ से कई पदनाम के पूर्वपद रूप में अवश्य व्यव्हत हैं। नाम परिवर्तन में प्रायः यह ध्यान रखा जाता है कि मुनि की राशि उसके पूर्व नाम की ही रहे। बहुत से स्थानों में प्रथमाक्षर भी वहीं रखा जाता है। जैसेसुखलाल का दीक्षित नाम सुखलाम, राजमल का नाम राजसुन्दर, रत्नसुन्दर आदि। तपागच्छ इसी प्रकार साध्वियों की नन्दियें (नामान्त पद) भी ८४ ही कही जाती हैं पर उनकी सूची अद्यावधि कहीं भी हमारे अवलोकन में नहीं आई। हमने प्राचीन ग्रंथों. पत्रों, टिप्पणकों आदि से इतने नामान्त पद प्राप्त किये हैं १ श्री, २ माला, ३ चूला. ४ वती, ५ मति, ६ प्रभा, ७ लक्ष्मी. ८ सुन्दरी. ९ सिद्धि, १० निद्धि, ११ वृद्धि, १२ समृद्धि, १३ वृष्टि, १४ दर्शना, १५ धर्मा, १६ मंजरी, १७ देवी, १८ श्रिया, १९ शोभा, २० वल्ली, २१ ऋद्धि, २२ सेना, २३ शिक्षा, २७ रुचि, २५ शीला, २६ विजया. २७ महिमा, २८ चन्द्रिका। अब दिगम्बर सम्प्रदाय एवं खरतरगच्छ के अतिरिक्त श्वेताम्बरीय गच्छों में कितने ही मुनि नामान्त पदों का उल्लेख देखने में आया है. उनका विवरण भी यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। दिगम्बर नंदि, चन्द्र, कीत्ति, भूषण-ये प्रायः नन्दि संघ के मुनियों के नामान्त पद हैं। सेन, भद्र. राज, वीर्य-ये प्रायः सेन संघ के मुनि नामान्त पद हैं । (विद्वद्ररत्नमाला, पृ०१८) श्री लक्ष्मीसागर सूरि (सं०१५०८-१७) के मुनियों के नामान्त पद-तिलक, विवेक, रुचि, राज. सहज, भूषण, कल्याण, श्रुत. शीति, श्रीति, मूत्ति, प्रमोद, आनन्द, नंदि. साधु, रत्न, मंडग, नंदन, वर्द्धन, ज्ञान, दर्शन, प्रम, लाभ, धर्म, सोम, संयम, हेन, क्षेम, प्रिय, उदय, माणिक्य. सत्य. जय, विजय, सुन्दर, सार, धीर, वीर, चारित्र, चंद्र, भद्र, समुद्र, शेखर, सागर, सूर, मंगल, शील, कुशल, विमल, कमल, विशाल, देव, शिव, यश, कलश, हर्ष, हंस, ५७ इत्यादि पदान्ताः सहस्रशः । (सोमचारित्र कृत गुरुगुणरत्नाकर काव्य, द्वितीय सर्ग) श्री हीरविजयसूरिजी के समुदाय की १८ शाखायें १ विजय, २ विमल, ३ सागर, ४ चन्द्र, ५ हर्ष, ६ सौभाग्य, ७ सुन्दर, ८ रत्न, ९धर्म, १० हंस, ११ आनंद, १२ वर्द्धन. १३ सोम, १४ रुचि, १५ सार, १६ राज. १७ कुशल.१८ उदय । (ऐतिहासिक सझायमाला. पृ०१०) खरतरगच्छ की विशेष परिपाटियाँ उपकेश गच्छ की २२ शाखाएँ १ सुन्दर, २ प्रभ, ३ कनक, ४ मेरु. ५ सार, ६ चंद्र, ७ सागर, ८ हंस, ९ तिलक, १० कलश, ११ रत्न, १२ समुद्र, १३ कल्लोल. १४ रंग, १५ शिखर, १६ विशाल. १७ राज, १८ कुमार, १९ देव, २० आनंद, २१ आदित्य, २२ कुंभ । (उपकेश गच्छ पट्टावली. जैन साहित्य संशोधक) उपर्युक्त नन्दी सूचियों से स्पष्ट है कि कहीं-कहीं दिगम्बर विद्वान यह समझने की भूल कर बैठते हैं कि भूषण. सेन, कीर्ति आदि नामान्त पद दिगम्बर मुनियों के ही हैं, वह ठीक नहीं है। इन सभी नामान्त पदों का व्यवहार श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी हुआ है। नंदियों के सम्बन्ध की खरतरगच्छ में कतिपय विशेष परिपाटियाँ देखने-जानने में आई हैं जिनसे अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का पता चलता है. अतः उनका विवरण यहाँ दिया जाता है। १ खरतरगच्छ के आदि पुरुष श्री वर्द्धमानसूरि के शिष्य श्री जिनेश्वर सूरिजी पट्टधर आचार्यों के नाम का पर्व पद "जिन" रुढ हो गया है। इसी प्रकार इन शिष्य संवेगरंगशाला निर्माता श्री जिनचन्द्र सूरिजी से [ २३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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