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________________ १२ कात्ति: १३ प्रिय, १४ प्रवर, १५ आनंद, १६ निधि, १७ राज. १८ सुन्दर, १९ शेखर, २० वर्द्धन, २१ आकर. २२ हंस, २३ रत्न, २४ मेरु, २५ मूत्ति, २६ सार, २७ भूषण, २८ धर्म, २९ केतु (ध्वज), ३० पुण्डक (कमल). ३१ पुङ्गव, ३२ ज्ञान, ३३ दर्शन, ३४ वीर इत्यादि । समझना चाहिए। आगे ब्राह्मण क्षत्रियों के नामों के पद भी बताये हैं। विशेष जानने के लिए मूल ग्रन्थ का ४० वाँ उदय (पृ०३८६-८९) देखना चाहिए। सूरि, उपाध्याय. वाचनाचार्यों के नाम भी साधुवत् समझें । साध्वियों के नामों में पूर्व पद तो मुनियों के समान ही समझें। उत्तर पद इस प्रकार है-- १ मति, २ चूला, ३ प्रभा. ४ देवी, ५ लब्धि,६ सिद्धि ७ वती। प्रवर्तिनी के नाम भी इसी प्रकार हैं । महत्तरा के नामों में उत्तर पद 'श्री' रखना चाहिए । जिनकल्पी का नामान्त पद 'सेन' इतना विशेष १ अमृत १५ चंद्र २९ निवास २ आकर १६ चारित्र ३० नंदन ३ आनंद १७ चित्त ३१ नंदि १८ जय ३२ पद्म ५ उदय १९ णाग ३३ पति ६ कमल २० तिलक ३४ पाल ७ कल्याण २१ दर्शन ३५ प्रिय ८ कलश २२ दत्त ३६ प्रबोध ९ कल्लोल २३ देव ३७ प्रमोद १० कीर्ति २४ धर्म ३८ प्रधान ११ कुमार २५ ध्वज ३९ प्रभ १२ कुशल २६ धीर ४० भद्र १३ कंजर २७ निधि ४१ मक्त १४ गणि २८ निधान ४२ भक्ति निम्नोक्त नामान्त पदों का भी उल्लेख मात्र मिलता है, पर व्यवहृत होते नहीं देखे गये कनक, पर्वत, चरित्र, ललित, प्राज्ञ. ज्ञान, मुक्ति, २३० ] खरतरगच्छ में इन नामान्त पदों को वर्तमान में नांदि 'या' 'नंदी' कहते हैं और इनकी संख्या चौरासी (८४) बतलायी जाती है जब कि ऊपर नाम ६८ ही दिये हैं। विशेष खोज करने पर हमें बीकानेर में खरतरगच्छीय श्री पूज्य श्री जिनचारित्रसरिजी के दफ्तर एवं अनेक फुटकर पत्रों में ऐसी ८४ नामान्त पद सूची उपलब्ध हुई पर उन सब में पुनरुक्ति रूप से पाये नामों को बाद देने पर जब ७८ रह गये तो खरतरगच्छ गुर्वावली आदि में प्रयुक्त नामों को अन्वेषण करने पर जो नये नामान्त उपलब्ध हुए उन सब को अक्षरानुक्रम सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं४३ भूषण ५७ रंग ७१ सागर ४४ भंडार ५८ लब्धि ७२ सार ४५ माणिक्य ५९ लाम ७३ सिंधुर ४६ मुनि ६० वर्द्धन ७४ सिंह ४७ मूर्ति ६१ वल्लम ७५ सुख ४८ मेरू ६२ विजय ७६ सुन्दर ४९ मंडण ६३ विनय ७७ सेन ५० मन्दिर ६४ विमल ७८ सोम ५१ युक्ति ६५ विलास ७९ सौभाग्य ५२ रथ ६६ विशाल ८० संयम ५३ रत्न ६७ शील ८१ हर्ष ५४ रक्षित ६८ शेखर २ हित ५५ राज ६९ समुद्र ८३ हेम ५६ रुचि ७० सत्य ८४ हंस दास. गिरि, नंद. मान, प्रीति, छत्र, फण. प्रभद्र. तिय, हिंस. गज, लक्ष्य, वर धर, सूर, सुकाल, मोह, क्षेम, वीर ( खरतरगच्छ में नहीं). तुंग (अंचल गच्छ में)। इनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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