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आदि अच्छे विद्वान् हुए हैं। इस परम्परा की विस्तृत नामावली वृहत् ज्ञान-मंडार में प्राप्त है । आ० जिनभक्ति सूरिजी के स्तवनादि उपलब्ध हैं। ये वहुत स्थूलकाय थे। हमारे ऐतिहासिक जन काव्य संग्रह में आपके परिचयात्मक गीत व चित्र पृ० २५२ पर छपे हैं । अन्य दो चित्र वृहद् ज्ञान-भंडार व ऋषभदेव मन्दिर में लगे हैं। इनके पट्टधर जिनलामसूरिजी अच्छे विद्वान् थे। इनका अध्ययन उ० धर्मवद्धन के पास हुआ था ।
विद्यागुरु थे। इनकी परम्पर! की नामावली हमारे ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह के पृ०६३ में दी हुई है।
३. नन्दलाल : ये अच्छे विद्वान थे। इनके रचित. _ 'गार-वैराग्य-तरंगिणी वृत्ति'. 'अष्टान्हिका व्याख्यान', 'सिद्धान्त रत्नावली व्याख्या', 'गजसिंह चौपाई' आदि प्राप्त हैं । दानविशाल आपके शिष्य थे। 'शृगार वैराग्य-तरंगिणी वृत्ति उन्हीं के आग्रह से बनाई गई थी। आगरा और बंगाल की ओर भी आपने विहार किया था । नन्दलाल आपका दीक्षा से पूर्ववर्ती नाम प्रतीत होता है। दीक्षा नाम नेमिरंग है। इनकी दीक्षा सं० १७५६ फागुन सुदी ७ सोजत में हुई थी। जिनचन्द्रसूरिजी के पास आपने दीक्षा ली थी । इनके गुरु का नाम रत्नसुन्दर था ।
२. उपाध्याय राजसोम : आप तत्कालीन यतियों में अच्छे विद्वान् थे। आपके रचित 'श्रुतज्ञानपूज। संस्कृत में और 'ऊंदररासों' और कई स्तवन 'आदि राजस्थानी भाषा में प्राप्त हैं । उपाध्याय क्षमाकल्यागजी के आप
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