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________________ बीकानेर का एक प्राचीन सचित्र विज्ञप्ति - लेख राजस्थान भारती के जनवरी १२४७ (१ अंक ४) में बीकानेर के एक विशिष्ट सचित्र विज्ञप्तिपत्र का परिचय दिया गया था । वह विज्ञप्तिपत्र सं० १८९८ में अजीमगंज में स्थित खरतरगच्छ आचार्य जिन सौभाग्यसूरिजी को बीकानेर के जैन संघ की ओर से भेजा गया था। अद्यावधि प्राप्त समस्त सचित्र विज्ञप्ति लेखों में वह सबसे बड़ा है एवं उसमें चित्र भी बड़े सुन्दर एवं कलापूर्ण हैं। बीकानेर के बड़े उपाश्रय के जिस वृहत् ज्ञान भंडार में उपरोक्त विज्ञप्तिपत्र था. उस समय तक उसके अति रिक्त उससे प्राचीन दो और सचित्र विज्ञप्तिपत्र भी इस भंडार में सुरक्षित हैं, यह विदित न हो सका था । क्योंकि ये पत्र विना सूची के बंडलों में बंधे पड़े थे । इधर कुछ वर्षों में उन बंडलों का निरीक्षण करते हुये वे अवलोकन में आये। अतः प्रस्तुत लेख में उनमें से बीकानेर के सचित्र विज्ञप्ति पत्र का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। प्रस्तुत सचित्र विज्ञप्ति लेख पूर्वप्रकाशित विज्ञप्ति पत्र से बहुत छोटा है अतः स्वाभाविकतया चित्रों की संख्या उससे कम है । पर प्राचीनता को दृष्टि से इस लेख का २२४ ] Jain Education International विशेष महत्व है । यह लेख उसकी अपेक्षा अधिक विद्वतापूर्ण होने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है । पूर्व प्रकाशित लेख से यह पत्र ९७ वर्ष पूर्व लिखित है अर्थात् वह पत्र १८१८ का था. और यह १८०१ का है । उस पत्र के चित्रकार का नाम नहीं मिला था इस चित्र में चित्रकार का नाम भी मिल जाता है। यह पत्र खरतरगच्छ के आचार्य जिनभक्तिसूरिजी की सेवा में बीकानेर से राधनपुर भेजा गया था। पूर्व पत्र श्रावक संघ की ओर से भेजा गया था. तब यह यति नन्दलाल के विशेष प्रयत्न से भेजा गया है। श्रावकों के वंदन की तो सूचना मात्र इसमें है । यह विज्ञप्ति लेख ९ फीट ७|| इंच लंबा और ९ इंच चौड़ा है। ऊपर का ७।। इंच का भाग बिल्कुल खाली है, जिसमें मङ्गलसूचक '॥ श्री ॥' लिखा हुआ है । अवशिष्ट ९ फुट में ५ फुट में चित्र है और ४ फुट में विज्ञप्ति लेख लिखा हुआ है। प्रथम चित्रों का विवरण देकर फिर लेख का विवरण दिया जा रहा है सर्व प्रथम नवफन मंडित पार्श्वनाथ जिनालय का चित्र है जिसके तीन शिखर हैं। ये उत्तुंग शिखर लंब गोलाकृति हैं । मध्यवर्ती शिखर ध्वज दंड मंडित है। परवर्ती चित्र में सुख शय्या में सुषुप्त तं शंकर । माता और तद्दर्शित चतुर्दश महास्वप्न तथा ऊपरि भाग में अष्टमांग लक चित्र बने हुए हैं। तत्पश्चात् महाराजा का चित्र है जो संभवतः बीकानेर नरेश जोरावरसिंहजी होंगे, जिनका बर्णन विज्ञप्तिपत्र में नीचे आता है। उनके पृष्ठ भाग में अनुचर चँवर बीज रहा है और सन्मुख जाजम पर दो मुसाहिब ढाल लिये वैठे हैं। इसके बाद नगर के चौहटे का संक्षिप्त दृश्य दिखाया गया है । चौरास्ते के चारों ओर चार दुकाने हैं जिनमें से तीन रिक्त हैं। अवशेष में पुरानी बीकानेरी पगड़ीधारी व्यापारी बैठे हैं। जिन सबके लम्बी अंगरखी पहनी हुई है। दुकानदारों में लेखधारी, तराजूधारी, व गांधी आदि धन्धे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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