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तीर्थमालाओं के उपर्युक्त वर्णनों से स्पष्ट है कि गत आठ सौ वर्षों की यात्रा के प्रमाण वीरप्रभु की जन्मभूमि को सहस्राब्दि से चलती आई परम्परा का प्रबल संकेत देती है। वहां का ब्राह्मण कुंड माहणा और कुमारिय। कोराई गांव तथा पुरातत्व सामग्री इस बात की साक्षी है। कोल्लाग आज कोनाग कहलाता है । जिस वैशाली को भगवान महावीर की जन्मभूमि बताया जाता है, वहां न । तो पुरातत्व है न परम्परा । बसुकुंड को क्षत्रियकुण्ड बताना किसी प्रकार भी बुद्धिगम्य नहीं है। कोल्लाग सन्निवेश को वैशाली का कोल्हुआ बताते हैं पर कोल्लाग कई थे । अतः सारी बातों पर विचार करने पर भगवान महावीर की जन्मभूमि श्वेताम्बर जैनागम एवं हजारों वर्षों की परम्परा से मान्य क्षत्रियकुण्ड ही प्रनाणित है।।
विद्यमान थे। जब उन्हें भगवान के निर्वाण की सूचना शीघ्र ही मिल गई तो उन्होंने प्रतिपदा के दिन उपवास कर लिया और बहिन प्रियदर्शना के द्वारा उन्हें पारणा कराने से भाई दूज पर्व प्रसिद्ध हो गया । यदि क्षत्रिय कुण्ड गैशाली का विभाग होता तो न वह वच ही पाता और न इतनी दूर तत्काल खबर ही मिलती जिससे वह उपवास कर लेता । यह बात तो इस परम्परागत क्षत्रियकुण्ड, जो पावापुरी से अधिक दूर नहीं है, की ही समर्थक है ।
भगवान महावीर की जन्मभूमि नैशाली नहीं थी इसके विषय में एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रमाण यह कहा जा सकता है कि वैशाली के राजा चेटक का मगध नरेश कणिक के साथ तो महाशिला कण्टक संग्राम हुआ
और कलवालक साधु के माध्यम से मुनिसुव्रत स्तूप भंग कर पैशाली को नष्ट कर वहां गधों से हल चलाने की प्रतिज्ञा पूर्ण की। क्षत्रियकुण्ड को मैशाली का उपनगर मानने वालों की राय में तो वैशाली के साथ क्षत्रियकुण्ड भी नष्ट हो गया क्योंकि यह घटना भगवान के निर्वाण से लगभग दस-पन्द्रह वर्ष पूर्व घटित हो चुकी थी और नन्दीवर्द्धन जो भगवान के बड़े भ्राता क्षत्रियकुण्ड के स्वतन्त्र राजा थे. भगवान के निर्वाणकाल में
एक बात और महत्वपूर्ण है कि भगवान की भाषा अर्द्धमागधी थी जो भगवान की मातृभाषा निश्चित रूप से थी-के आगमादि प्रमाण भरे पड़े हैं । आगम भी उसी भाषा में है। कहीं भी बज्जी भाषा जो विदेह देश की थी उल्लेख नहीं है । अतः यह स्थान आगे कभी मगध में रहा हो किन्तु भाषा तो मगध की ही थी। यदि क्षत्रियकुण्ड कभी विदेह देश की सीमा में भी रहा हो तो भी जन्मस्थान पैशाली का उपनगर कभी नहीं हो सकता। वह तो भगवान का ननिहाल था । चेटक महाराजा की सभी पुत्रियां भारत के बड़े-बड़े देशाधिपतियों के यहाँ विवाहित थीं और भगवान का वंश बहुत ऊँचा था और इस क्षत्रियकुण्ड के स्वतन्त्र नरेश्वर थे और चेटक की पुत्री भी भगवान के बड़े भ्राता नन्दिवर्द्धन को ब्याही थी। अतः शास्त्रप्रमाण और इतिहास प्रमाण व परम्परा से यही क्षत्रियकुण्ड है । पाश्चात्य विद्वानों के भ्रान्त अन्धानुकरण में न जाकर सत्यान्वेषी-सत्यानुगामी बनें ।
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