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संवत १७११-१२ में शीलविजयजी ने पूर्व देश के
सं० १७५० में सौभाग्यविजय रचित तीर्थमाला में तीर्थों की यात्रा की थी जिसका वर्णन उन्होंने बड़ी इस प्रकार लिखा हैतर्थमाला में इस प्रकार किया है
कोश छबीस विहार थकी चि० क्षत्रीकंड कहेवाय । तिहां थी आव्या क्षत्रिकुण्ड, वीरजी वंदु माहण कुण्ड । परवत तलहटियें वसे चि० मथरापुरछे जाय ||१३|| . च्यवन जन्म वीर ना अहिठाण, पावापुरी पाम्या निर्वाण ॥
कोश दोय परबत गयाँ, चि० माहणकंड कहे तास । इसमें क्षत्रियकुण्ड के कल्याणक मंदिरों के अतिरिक्त
ऋषभदत्त ब्राह्मण तणों चि० हतो तिणे ठामे वास ॥१४।। माहणझुण्ड में भी वोर प्रभु को वन्दन करने का उल्लेख किया है । तपागच्छीय विजयदेवसरि के समय में हिवणां तिह तटनी वहै चि० गाम ठाम नहीं कोय । विजयसागर ने समेतशिखर तीर्थमाला में इसप्रकार जीरण श्री जिनराज ना चि० वंदु देहरा दोय ||१५|| लिखा है--
तिहां थी परवत ऊपरि चढणा चि० कोश जिसे छे च्यार । खांति खरी खत्रीकंडनी जाणी जन्म कल्याण हो वीरजी।। गिरि कड़खें एक देहरों चि० वीर बिंब सुखकार ||१६|| चैत्र सुकल तेरसि दिने, यात्रा करी सुप्रमाण हो वीरजी ।।
तिहाँ थी क्षत्रियकंड कहै चि० कौश दोय भूमि होय । मास वसंत वनि विस्तरइ, मलयाचल ना वाय हो वीरजी।
देवल पूजसहु वले चि० पिण तिहाँ नवि जाये कोय ||१७|| वनराजो फूली-फली, परिमल पुहवी न माय हो वीरजी ॥ मओरिय मचकुंद मोगरा, मरुआ मंजरि वंत हो वीरजी
गिरि फरसी ने आवीया चि० गाम कोराई नाम । वउलसिरि वली पाडली. भृग युगल विलसंत हो वीरजी।।
प्रथम परीषह वीर ने चि० वड़ तले छे ते ठाम |१८|| कुसुमकली मनि मोकली. बिमणा दमणानी जोडि हो वीरजी। तिहाथी चिहुँ कोशे भली चि० काकंदी कहैवाय । तलहटीई दोय देहरा. पूज्या जिन मनि कोड़ि हो बोरजी ।। धन्नो अणगार ए नगर नो चि० आज काकंदी कहैवाय ।।१९।। सिद्धारथ घर गिरि शिरि तिहां वंदू एक बिंब हो वीरजी। सौभाग्यविजयजी ने लिखा है कि बिहार से क्षत्रिय विहूं कौशे ब्राह्मणकुंड छइ. वीरह मूल कुटुंब हो वीरजी ।। ___ कुण्ड बीस कोश है। वे मथुरापुर-तलहटी के मार्ग से
दो कोश गये और नदो के दोनों ओर जो दो प्राचीन पूजिय गिरिथकी ऊतरचा, गामि कुमारिय जाय हो वीरजी।
मंदिर हैं. वहां ब्राह्मणकुण्ड और ऋषभदत्त का घर लिखा प्रथम परीषह चउतरई, वंद्या वीर ना पाय हो वीरजी ।।
है। वहाँ से पर्वत पर जन्मस्थान के वर्तमान मन्दिर गये इस तीर्थमाला में तलहटी में दो मंदिर व जन्म फिर वहाँ से दो कोश क्षत्रियकुंड ( सिद्धार्थ राजा का महलस्थान में एक जिन बिम्ब एवं वहाँ से दो कोश ब्राह्मण- जन्मस्थान ) लिखा है. वहाँ कोई नहीं जाता, मन्दिर कुण्ड एवं कुनारिय गाँव जाकर जहाँ भगवान का प्रथम के दर्शन करके ही लोग लौट आते हैं। इन्होंने भी उपसर्ग हुआ-चोतरेपर वीर प्रभु के चरणों की वन्दना भगवान के प्रथम उपसर्ग स्थान कुमारि गाँव को जिसे करने का उल्लेख है। वहाँ से सुविधिनाथ जन्मभूमि आज कोराई कहते हैं. वड़ के नीचे यात्रा करने का काकन्दी ७ कोश तथा विहार से २६ कोश होने का उल्लेख किया है। यहाँ से काकंदी. जहां का धन्ना महत्वपूर्ण उल्लेख है।
अणगार था, चार कोश बतलाया है।
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