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श्री जिनवर्द्धन सूरिजी ने पूरब देश चैत्य परिपाटी स्तवन (सं०१४६१-८६) में लिखा है कि
होने का उल्लेख किया है। इसी तीर्थमाला में समेतशिखर महातीर्थ से २० कोश दूर ऋजुवालुका तट पर जंभीग्राम में भगवान महावीर के केवलज्ञान स्थान में मन्दिर होने का महत्वपूर्ण उल्लेख भी किया है।
सिद्ध गुणराय सिद्धत्थकुल मंडणं, रुद्ददालिद्द दोहाग दुह खंडणं दभण कुंडपुरि थुणउ जण रंजणं, खित्तिया कुंड गामंमि वीरंजिणं
॥२२॥
श्री विजयदानसूरि के शिष्य श्रीपति के नाम युक्त भयरव कृत तीर्थमाला में अलवर से निकले संघ के वर्णन में पावापुरी से विहार और तंगिया होकर क्षत्रियकुंड ब्राह्मणकुंड बढ़ते जाने का उल्लेख देखिये
__ सुप्रसिद्ध विद्वान जयसागरोपाध्याय ने सं० १५२४ में राजगृह में प्रतिष्ठादि कराए जिनके अभिलेख विद्यमान हैं। उन्होंने वहां से जाकर क्षत्रियकुण्ड की भी यात्रा की थी जिसका उल्लेख सं० १५२५ फा० ६०५ जौनपुर में लिखित आवश्यक पुष्पिका व उसी संवत् में लिखित दशवैकालिक वृत्त की प्रशस्ति में पाया जाता है।
जोइय नगरी तुंगया जिहां थया श्रावक सुविचार श्रीमुख वीर प्रशंसिया, दनेसूर हो समकित धार ॥६॥
खत्रीकुण्ड सोहामणउ जिहा जनम्यउ चरम जिणंद आजतीरथ नउ राजियउ जसु सेवर हो चउसठि इन्द ।।२।।
आचार्य मुनिप्रभसूरि ने अपनी तीर्थमाला में माहण खलिय कुंडह गामिहि, राजगृहि पावापुर ठामहि लिखा है । कवि हंससोम ने सं० १५६५ में यात्रा की जिसका वर्णन उन्होंने तीर्थमाला में इस प्रकार किया है
कोस त्रिणि तिहां थी अछइ. माहणकुंड सुक्षेत्र सुरसुख भोगवि अवतर्या, तिण बीरइ हो किय ठाम पवित्र ॥६३।।
जिणहर बे नमि चालीया, इस नगर ऊपरी अधकोश जन्मभूमि जिन गुण थुगुं हिव टलिया बहु भवचा दोष ॥६४।।
हवइ चालिया क्षत्रीकुंड मनि भाव धरीजइ तीस कोस पंथइ गया देवल देखीजइ निरमल कुंड करी सनान घोअति पहिरिजइ वीरनाह वंदी करी महापूज रचीजइ बालपणि क्रीड़ा करी ए. देखी आमली रूख राय सिद्धारथ तिहाँ घरइ, प्रेखंता गई तिस भूख २३
काकंदी नगरी कही इक जोअण गाऊ एक । सुविधिनाथ तिहाँ जनमिया, ते थानक हो थुणउ धरिय
विवेक ॥६५॥
चउद सहस मुणिवर मला, तिहां मांहि प्रशंसइ वीर । भद्रानंदन जोइय धन धन्न हो साहस धीर ॥६६॥
सं० १६०९ में तपागच्छीय पुण्यसागर ने भी इस प्रकार लिखा है
दोइ क्रोस पासिइ अछइ, माहणकुंड गाम देवानंदा तणी कूखि अवतरवा ठाम ते पूरइ मुझ मन आस, भावन भाबइ गौरड़ी ए। गाइ नितु रास वीरनह निहालतां ए ने प्रतिमा वंदी करी. सारिय सवि काम पांच कोश काकंद नयर श्री सुविधिह जन्म ||
क्षत्रियकुण्ड सुठाम महावीर जिन जिण रामतिरमइंए । ए चठवीसइ नाम पूरव दिसि जाणी संघ आवइ यान्ना
घणाए ।।१४३॥
यहां पर कवि ने सिद्धार्थ राजा का महल, आमली क्रोड़ा वृक्ष देखने तथा कुण्ड में स्नान करने का एवं जिन प्रतिमा की महापूजा रचाने का वर्णन किया है। वे राजगृह से ३० कोश चलकर आये थे और यहाँ से पांच कोस सुविधिनाथ भगवान के जन्म कल्याणक तीर्थ काकन्दी जाने का और वहाँ से आते ६० कोश चम्पानगर
___सं० १६७० में आगरा के लोढा कुंअरपाल सोनपाल के यात्री संघ के विवरण में खरतरगच्छीय कवि विनयसागर ने इस प्रकार लिखा है
खित्रीकुंड सुहामणउ. तिह जनम्या श्री वर्धमान रे। काकंदीपुरि वंदीयइ. श्री सुविधिनाथ जिन माण रे ॥७२॥
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