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श्री वाक-युत इन स्वान्तः सुखाय साहित्य-साधक बन्धुवर सेठ भंवरलालजी नाहटा के उक्त अभिनन्दन में हमारा हार्दिक सहयोग है। उनके प्रति हार्दिक स्नेहांजलि अर्पित करते हुए हम उनके सुस्वास्थ्य एवं सफल चिरायुष्य की कामना करते हैं।
-डा० ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ
मेरे मन में श्रद्धेय भंवरलालजी नाहटा के प्रति अगाध श्रद्धा और सम्मान है। इनके प्रेरक व्यक्तित्व का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ। प्रचार और आडम्बर से रहित इस विद्वान ने अपने वैदुष्य से श्रमण संस्कृति और साहित्य के अनेक अघते संदर्भो' को उजागर किया है। इनका अभिनन्दन एक स्तुत्य प्रयास है।
-प्रो० कल्याणमल लोढ़ा भूतपूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय
मैं नाहटा बन्धुओं के कार्यों से चिरकाल से परिचित हूँ। श्री भंवरलालजी नाहटा ने विद्या के अनेक क्षेत्रों में कार्य किया है। लिपिशास्त्र के भी वे निष्णात है। ७५ वर्ष की उम्र में भी वे अविरल कार्यलग्न हैं यह हर्ष की बात है। जैन साहित्य को अधिक समृद्ध करने के लिये वे दीर्घकालपर्यन्त तन्दुरुस्ती भरा आयुष्य के उपभोक्ता हों ऐसी शुभकामना करता हूँ।
- रतिलाल दीपचंद देसाई आमूल सोसाइटी. अहमदाबाद
श्री भंवरलालजी नाहटा माटे जे उपमा आपीये ते ओछी छ। जुदी जुदी भाषा नां अनेक ग्रन्थों नो अनुवाद करी. प्रकाशित करी जैन समाज नी तेमने अनुपम सेवा बजावी छ ।
आवो हीरो जे पाणी मां तरे अने अनुपम प्रकाश फेलावे । ७५मां जन्म दिन प्रसंगे प्रभु आ अमूल्य हीरा ने हर हमेश जैन समाज माँ तरतो राखे ।
-कान्तिलाल नेमचंद शाह, बम्बई
श्री नाहटाजी जैसे अप्रतिम विद्यापुरुष का अभिनन्दन प्रज्ञा एवं पुरुषार्थ का अभिनन्दन है। ऐसे प्रज्ञापुरुष जैन समाज में ही नहीं, सम्पूर्ण भारतीय समाज में विरल हैं। उनकी विद्योपासना एवं सरस्वती-साधना भारतीय मनीषा का एक उदाहरण है।
-डॉ० मोहनलाल मेहता अध्यापक, दर्शन विभाग, पूना विश्वविद्यालय
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