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कुमारग्राम आज भी वर्तमान क्षत्रियकुण्ड के पास लघुवाड़ से तीन मील दूरी पर स्थित है और तीर्थमालाओं से पता चलता है कि वहाँ पर भगवान के प्रथम परिषह स्थान की स्मृति में वृक्ष के नोचे चरणपादुकाए स्थापित थीं। अभी थोड़े अरसे पूर्व उन चरणों को लाकर लछवाड़ धर्मशाला में रखा गया सुना है । लछुवाड़ से ८ मील दूर कोनाग ग्रान है जो कोल्लाग का ही अपभ्रंश रूप है। कोल्लाग से पूर्व १० मील पर मौरा गांव है । अतः आगमोक्त क्षत्रियकुंड के निकटवर्ती स्थानों की संगति इसी क्षत्रिय कुण्ड से बराबर बैठ जाती है। मुनि दर्शनविजयजी ने लिखा है कि राजधानी के परखण्डा में एक जिन प्रतिमा भी है जिसे लोग अन्य नाम से पूजते हैं।
एक प्रामाणिक इतिहास ग्रन्थ प्रस्तुत करना चाहता हूँ। कल्पसूत्र में उल्लिखित क्षत्रियकुण्ड के विस्तृत भू-भाग में यत्र-तत्र मिट्टी के बड़े-बड़े स्तूपों का अगर उत्खनन हो तो प्रामाणिक इतिहास लेखन की बहुत सामग्री मिल सकती है। उदाहरणस्वरूप एक स्तूप से अनायास भगवान महावीर की मिट्टी की मूर्ति मिली है जो मेरे पास सुरक्षित है जिस पर अज्ञात लिपि भी है। मेरा यह दावा है कि वैशाली के हिमायतियों ने कोई ऐसा तथ्य अद्यावधि प्रस्तुत नहीं किया है जिसे महत्व दिया जा सके । इतिहास के बड़े-बड़े विद्वानों से मेरी जबर्दस्त टक्कर भी होती रही है और अन्त में उन्होंने मेरे तथ्य को स्वीकार भी किया है।
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वर्तमान क्षत्रियकुण्ड के आस-पास कई गांवों में प्राचीन जंन मन्दिर थे जिनका उल्लेख तीर्थमालाओं में पाया जाता है। महादेव-सिमरिया (लघुवाड़ से पूर्व ) में पांच जिनालय थे जिनकी प्रतिमाएं वहाँ के लोगों ने तालाब में डाल दी। यद्यपि आस-पास के गाँवों में काफी जैन अवशेष नष्ट कर दिए गये फिर भी खोज करने पर आज भी मिल सकते हैं।
योगेन्द्र युगप्रधान गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी ने क्षत्रियकुण्ड-जन्मस्थान में कई महीनों तक रहकर साधना की। उन्होंने तथा साधक तपस्वी श्री मनमोहनराजजी भणशाली जो वहां काफी समय तक रहे थे ने अपनी अनु- . भूतियों से क्षत्रियकुण्ड-जन्मभूमि को सही बतलाया था ।
डा० श्यामानंद प्रसाद ने सन् १९७९ में जमुई से एक 'श्रमण भगवान महावीर का जन्म स्थान क्षत्रियकुण्ड ग्राम' पुस्तक प्रकाशित की है इसमें इन्होंने भी क्षत्रियकुण्ड (जमुई) की सप्रमाण पुष्टि की है।
___ इस प्रदेश के जैनेतर अधिवासियों में भी भगवान महावीर की जन्मभूमि के प्रति बड़ी श्रद्धा है । सिकन्दरा के डा० भगवानदास केशरी ने बहुत वर्ष पूर्व वर्तमान क्षत्रियकुण्ड को सिद्ध करते हुए एक लेख प्रकाशित किया था । मैं उनके साथ ३० वर्ष पूर्व कई गाँवों में घूमा था और पुरातत्वावशेष देखे थे। लछुवाड़ में ही जन्मे हुए नरेशचंद्र मिश्र ने 'श्रमण' में 'श्री महावीर की सच्ची जन्मभूमि' लेख प्रकाशित किया और उसमें वर्तमान क्षत्रियकुण्ड की पुष्टि की। उनका 'वर्तमान काव्य' भी 'श्रमण' में सन् १९६८ से ७० तक छपता रहा फिर एक लेख 'क्षत्रियकुण्ड-कल्याणविजय जी का भ्रम' 'श्रमण' में प्रकाशनार्थ लिखा। ता०२३-३-७४ को मननपुर ( मुंगेर ) से उन्होंने मुझे लिखा कि मैं क्षत्रियकुण्ड के संबंध में
वैशाली भगवान महावीर का ननिहाल और विहार भूमि थी पर जन्मस्थान क्षत्रियकुण्ड वहां नहीं था, क्यों कि किसी भी ग्रन्थ में क्षत्रियकुण्ड और ब्राह्मणकुण्ड को वैशाली का विभाग होना नहीं बतलाया है। अतः केवल पैशालिकविदेह शब्द और एकाध स्थान के नाम-साम्य के आधार पर उसे जन्मभूमि कह देना सर्वथा अनुचित है। मुनिश्री दर्शन विजयजी महाराज ने अपने क्षत्रियकुण्ड' ग्रन्थ में विविध प्रकार से सं० २००६ में पैशाली के समर्थक विद्वानों को कई असंगतियां बतलाई हैं जिन्हें विस्तारभय से यहां नहीं लिखा है।
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