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इसलिए ये विशेषण मातृपक्ष के सूचक हो हैं। ज्ञात. ज्ञातपुत्र. ज्ञातसुत आदि आपके विशेषण पितृपक्ष सूचक हैं। भगवान महावीर की माता वैशाली के उच्चकुलीन लिच्छवी चेटक महाराजा की बहिन थी इसलिए पीहर पक्ष का गौरव माना जाना स्वाभाविक ही है। मगधराज श्रेणिक को पत्नी चेलना को विदेह-कन्या और उसके पुत्र कोणिक-अजातशत्रु को वैदेही-पुत्र तथा गुप्त वंशी राजा चन्द्रगुप्त की पत्नी कुमारदेवी को लिच्छवी-जाता, समुद्रगुप्त को लिच्छवी दौहित्र कहा जाता है।
सूत्रकृतांग की टीका में वैशालिक शब्द की टीका करते हुए लिखा है
कुण्ड के राजा सिद्धार्थ की राजसभा और सभासदों का वर्णन करते हुए लिखा है-अनेक गणनायक, दण्डनायक, राज्येश्वर, तलवर, मांडविक, कौटुम्बिक मंत्री. महामंत्री. गणक. द्वारपाल, अमात्य, पीठमर्दक, अंगरक्षक, सेठ, सेनापति, पार्षद, सार्थवाह, दूत, सन्धिपाल आदि, से सिद्धार्थ राजा परिवेष्टित थे। भगवान के नामकरण के प्रसंग में धनधान्य वृद्धि के साथ सामन्त राजा भी वशवतीं हुए लिखा है । इससे क्षत्रियकुण्ड को वैशाली का एक उपविभाग मान लेना किसी भी प्रकार से औचित्य नहीं रखता । वैशाली के समर्थक आचार्य विजयेन्द्रसूरिजी ने भी अपने तीर्थंकर महावीर के पृ० ८५ में 'यह कुण्डपुर वैशाली का उपनगर नहीं था, बल्कि एक स्वतंत्र नगर था.' लिखा है। इसी ग्रन्थ के पृष्ठ ८७ में वैशाली और कुण्डग्राम की दूरी सवा मील थी. लिखा है पर यह सम्भव नहीं, क्योंकि वैशाली बहुत बड़ा नगर था उसमें ७७०७ राजाओं का गणतन्त्र परिषद होने के उल्लेख बौद्ध शास्त्री में स्पष्टतः संप्राप्त हैं। डा० हारनेल ने लिखा है वैशाली के तीन विभाग थे, जिनमें पहले विभाग में सुवर्ण कलश वाले ७००० घर थे. बीच के विभाग में रजत कलश वाले १४००० घर थे और अन्तिम विभाग में ताम्र कलश वाले २१००० घर थे अतः उसका विस्तार कई मीलों में होगा । इसलिए सवा मील में ही स्वतंत्र क्षत्रियकुण्ड राज्य हो यह सम्भव नहीं । पृ० ८५ में उन्होंने ही लिखा है कि 'वैशालिक' नामकरण के कारण भगवान महावीर का जन्म स्थान वैशाली मानना पूर्णतः त्रुटिपूर्ण होगा।
विशाला जननी यस्य, विशालं कुलभेव वा। विशालं प्रवचनं चास्य, तेन वैशालिको जिनः ।।
अब श्वेताम्बर सम्प्रदाय मान्य वर्तमान क्षत्रियकुण्ड के सम्बन्ध में कुछ प्रकाश डाला जाता है जिसपर विचार कर भगवान महावीर की जन्मभूमि की वास्तविकता का पाठकगण स्वयं निर्णय कर सकेंगे।
क्षत्रियकुण्ड के पास ही ब्राह्मणकुण्ड ग्राम नगर था यह प्राचीन जैनागमों से भली-भाँति सिद्ध है और वर्तमान क्षत्रियकुंड के पास माहणा ग्राम है जो आगमोक्त माहणकुण्ड का ही प्रसिद्ध नाम है। इसी प्रकार भगवान के दीक्षा प्रसंग में लिखा गया है कि इन्होंने मार्गशीर्ष कृष्ण १० को तृतीय प्रहर में ज्ञातरखण्डवन में दीक्षा स्वीकार की और कुमारग्राम पधारे । दूसरे दिन प्रातः काल कोल्लाग सन्निवेश में दो दिन के उपवास का पारणा बहुल ब्राह्मण के वहाँ क्षीर से किया । यहाँ से भगवान 'मोराक सन्निवेश पधारे । आवश्यक नियुक्ति में कुमारग्राम पधारने का उल्लेख इस प्रकार है
भगवान महावीर के विदेहदत्त. वैशालिक आदि जो विशेषण आगमों में दिये हैं उनके आधार पर विदेहवर्ती वैशाली भगवान की जन्मभूमि थी यह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है पर वस्तुतः यह विशेषता भगवान महावीर के ननिहाल के सूत्र हैं क्योंकि भगवान की माता त्रिशला को ही विदेहदिन्ना आदि विशेषण दिये गए हैं पर पिता श्री सिद्धार्थ राजा के लिए नहीं।
बहिआ य णाय संडे. आपुच्छित्तण नायए सत्वे । दिवस मुहुत सेसे. कुमार गामं समणुपत्तो |मा० १११ ।।
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