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________________ पर कल्याणकों की भूमि निर्विवाद रूप में मान्य थी पाश्चात्य अन्वेषकों ने जब वसाद प्राचीन वैशाली को खोज निकाला और जेनागमों में भगवान महावीर के लिए प्रयुक्त वैशालिक विदेशदत्त विदेहजात्य शब्द पढ़े तो उन्होंने धारणा बना ली कि भगवान का जन्मस्थान वैशाली ही है। इसका समर्थन जैन आचार्य श्री विजयेन्द्र सूरि और मुनि कल्याणविजय जी ने भी कर दिया। इससे अन्य लोगों को भी वैशाली को भगवान महावीर का जन्मस्थान मानने की प्रेरणा मिली। बिहार सरकार ने वैशाली के विकास के लिए काफी प्रयत्न व प्रोत्साहन दिया। वहाँ महावीर जयन्ती विशाल रूप से मनायी जाने लगी। राज्यपाल अणे और महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के सान्निध्य में जब जयन्ती मनायी गयी तो पावापुरी से प्रतिमा ले जाकर स्नात्रपूजादि की गईं। मैं भी उस उत्सव में सम्मिलित हुआ था । डा० योगेन्द्र मिश्र ने वैशाली के उन्नयन में पर्याप्त योगदान दिया । इससे दिगम्बर समाज प्रभावित होकर वहाँ जैन मन्दिर और जैन विद्या शोध संस्थान भवन निर्माणादि में सक्रिय हो गया । दि० समाज मान्य नालन्दा वाला कुण्डलपुर तो अप्रामाणिक था ही अतः उनका वैशाली की ओर झुकाव होना स्वाभाविक ही था। पर श्वेताम्बर समाज के पास अपने मान्य क्षत्रियकुण्ड ( लछ्वाड़ ) के सम्बन्ध में काफी प्राचीन परम्परा रही है। इसलिए आचार्य विजयेन्द्रसूरिजी और मुनि कल्याणविजयजी के समर्थन के वावजूद भी उसका झुकाव बैशाली की ओर नहीं हो सका। मुनिश्री दर्शनविजय जी ( त्रिपुटी) ने तो गुजरात में वैशाली जन्मस्थान अमान्य करते हुए श्वेताम्बर समाज द्वारा परम्परागत मान्य क्षत्रियकुण्ड की पुष्टि में एक ग्रन्थ भी पैंतीस वर्ष पूर्व लिखकर प्रकाशित कराया। परन्तु खेद है कि विद्वानों का ध्यान उस ओर नहीं गया और वे पाश्चात्य अन्वेषकों के प्रवाह में ही प्रवाहित होते गये। Jain Education International वर्तमान में कई लोगों द्वारा भगवान महावीर की जन्मभूमि वैशली किन आधारों पर मानी जाती है, उनपर विचार करते हुए वह भ० महावीर की जन्मभूमि क्यों नहीं - इस पर प्रकाश डालकर फिर परम्परागत श्वेताम्बर मान्य क्षत्रियकुण्ड को जन्मस्थान की प्राचीनता और युक्ति पुरस्सर पृष्टि पर विमर्श करना अभीष्ट है। डा० हर्मन जाकोबी ने भ० महावीर की जन्मभूमि वौद्धों के महावग्ग सूत्र में बुद्ध के कोटिग्राम पधारने का उल्लेख देख कर कुण्डग्राम को कोटिग्राम बतला दिया। डा० होंर्नेल ने कोल्लाग को क्षत्रियकुण्ड बतलाया क्योंकि कोल्लाग का उल्लेख जैन ग्रन्थों में आता है और वैशाली के निकट है वसुकुण्ड को लोगों ने क्षत्रियकुण्ड मानकर उसे भगवान महावीर का जन्मस्थान बतला दिया। मुनि कल्याणविजयजी ने वैशाली के एक विभाग को क्षत्रियकुण्ड बतलाया और विजयेन्द्र सूरि जी ने पूर्व मान्यताओं का संशोधन करते हुए वसुकुण्ड को क्षत्रियकुण्ड स्वीकार कर लिया। पर वास्तव में किसी भी बौद्ध या जेन ग्रंथ में देश ली का उपनगर क्षत्रियकुण्ड या ब्राह्मणकुण्ड था, नहीं बतलाया है । वसुकुण्ड और क्षत्रियकुण्ड में भी कोई नाम साम्य नहीं है। अतः ये सभी मान्यताएं' मनगढन्त, कल्पित और निराधार है। कोल्लाग भी कई थे अतः वैशाली के निकटवती कोलुआ को क्षत्रिय कुंड के निकट वाला कोल्लाग ही है यह मान्यता देना भी सही नहीं है। कल्पसूत्रादि प्राचीन प्रामाणिक आगमों से यह भलीभांति सिद्ध है कि क्षत्रियकुण्ड एक स्वतंत्र ग्राम और बड़ा नगर था वहां के जमालि और प्रियदर्शना ( भगवान के बेटी-जंवाई ) ने पांच सौ पुरुषों व एक हजार स्त्रियों के साथ दीक्षा ग्रहण की थी इससे वहां बड़ी भारी जनसंख्या वाली वस्ती होने का प्रबल संकेत मिलता है। कल्पसूत्र में भगवान महावीर के पिता और क्षत्रिय For Private & Personal Use Only [ २१७ www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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