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श्रीभूषण के शिष्य थे, ने अपनी सर्वतीर्थवन्दना में क्षत्रियकुण्ड यात्रा कर जिनभवन की वन्दना करने का निम्नोक्त वर्णन किया है
नालन्दा के निकटवर्ती स्थान कुण्डलपुर को जन्मस्थान मानकर मन्दिरादि स्थापित किए । वस्तुतः वह भगवान की जन्मभूमि क्षत्रियकुण्ड होना सर्वथा असंभव था क्योंकि उसके निकटवर्ती ब्राह्मणकुण्ड आदि आगमोक्त स्थान न होने से भौगोलिक स्वीकृति भी अप्राप्त थी। इधर अप्रामाणिक स्थान की अमान्यता और दूसरी ओर पाश्चात्यों व कई भारतीय विद्वानों द्वारा वैशाली के वसुकुण्ड को क्षत्रियकुण्ड मान्यता देने से दिगम्बर समाज ने उसे ही भगवान की जन्म भूमि होने की मान्यता स्वीकार कर ली।
क्षत्रियकुण्ड पवित्र सिद्धारथ नृप सारह त्रिशला उर उत्पन्न वर्धमान भव तारह राज्य भौग मद तज्यो मोह पच्छर सवि छड्यो अंगीकृत तप निविड़ मान मकरध्वज दंडयो क्षत्रियकुण्ड जिनभुवन ने वंदन पातक परिहरे ब्रह्म ज्ञान कर जोड़ि कर त्रिकरण शुद्ध वदंन करे ।।७५/
मगधनरेश कोणिक द्वारा वैशाली को नष्ट करने के बाद उसका नाम शेष हो गया था। दिगम्बर साहित्य में कहीं उज्जैन को विशाला-ौशाली बतलाया तो तीर्थमालाओं
और ज्ञानसार जी के जिनप्रतिमा स्थापित ग्रामादि में बिहार शरीफ को पैशाली, तुंगिया आदि से अभिधार्य किया है। जहां नैशाली अज्ञात थी, क्षत्रियकुंड और जन्मस्थान नाम से उसको प्रकाश में लाने वालों द्वारा प्रचारित किया गया तब लछुवाड़ के निकटवर्ती क्षत्रियकुण्ड को तत्रस्थ जनता जन्मस्थान नाम से शताब्दियों से पहचानतो आई है । मुनिराज श्री दर्शनविजयजी जव सं० १९८७ में वहां गये तो उन्हें जन्मस्थान की ग्रामीणों में प्रसिद्धि के लोक विश्वास का हठीभूत अनुभव हुआ था।
श्वेताम्बर यात्रा विवरण तो बहुत से प्राप्त हैं जो आगे बतलाये जायेंगे । यहां की जो भगवान महावीर स्वामी की प्राचीन प्रतिमाए पूज्यमान हैं उनमें जन्मस्थान मन्दिर की प्रतिमा लगभग १५०० वर्ष प्राचीन है। पचास वर्ष पूर्व जब हमने प्रथम वार क्षत्रियकुण्ड की यात्रा की थी तो वहां की धर्मशाला-लछुवाड़ में भगवान की माता त्रिशला महारानी की मूर्ति जिनकी गोद में बालक भगवान महावीर थे व जिस पर प्राचीन गुप्त लिपि का अभिलेख उत्कीणित था, दृष्टिगोचर हुई थी, शीघ्रता में न पढ़ सके न छाप लेने का ही साधन था। कुछ महीनों बाद जब हमारे मित्र श्री ताजमलजी बोथरा यात्रार्थ आये तो उन्हें प्रतिमा कलकत्ता लाने को कहा पर वह मूति सुरक्षित न रही, गायब हो चुकी थी। इस तीर्थभूमि जो जमइ-नवादा रोड पर स्थित सिकन्दरा से दो मील दूर लछुवाड़ जहां मन्दिर और धर्मशाला है-से तीन मील कुण्डघाट होकर जाना पड़ता है। नदी के दोनों ओर मन्दिर है जो प्रवचन कल्याणक और दीक्षा कल्याणक के हैं। पहाड़ उल्लंघन करके जन्मस्थान मन्दिर जाना पड़ता है। वहाँ अन्य मार्ग से मोटर भी जाती है।
श्वेताम्बर संप्रदाय सेकड़ों वर्षों से भगवान महावीर का जन्मस्थान क्षत्रियकुण्ड जहां मानता है, वहां के समर्थक अनेक साहित्यिक व पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध हैं । सात सौ वर्षों से तो यहां दूर-दूर से श्वेताम्बर यात्री तीर्थयात्रा करते आ रहे हैं जिन के प्रामाणिक उल्लेख प्रचुर परिमाण में संप्राप्त है। आगे जैन तीर्थों की सम्मिलित यात्रा बिना किसी सांप्रदायिक भेद-भाव से की जाती थी। सतरहवीं शती के दि० ब्रह्म ज्ञानसागर जो काष्टा संघ नंदीतट गच्छ के भट्टारक
कुछ वर्ष पूर्व तक तो उपर्युक्त क्षत्रियकुण्ड की ही भगवान महावीर की च्यवन, जन्म व दीक्षा तीन
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