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राजस्थानी भाषा सप्तक
धरती माता आंख्या फाड़े उडीक रेयी उण पूतां नै, मरु मेवाड़ी ढूंढाड़ी हाडोती माध्यम सशक्तां कंतां नै: रतनां री कीमत आंकणियो कोई झंवरी जद आसी. मायड़ भासा री जग-मग ज्योत विध-विध भांत जगा
पासी
पिंगल डिंगल वैण सगाई छंद कत्थक गद्य पद्य सिगलो, नवसर हार बणा सतरंगी ओपै सुरसति रे कंठ भलौ; वेदाग पाच नै काच गि#गौ आक दूध री नहिं परिव्या, शब्द ब्रह्म रा असल भाव बीजों में नहीं है इण
सरिखा २ हुयां सरण्डर शस्तर पाती नांख्यां जंग लाग जिणी तरियां, भूला पड़ ज्यावै स्वेच्छा सं बीजी बोली नै अनुसरियां तगड़ो भंडार भर्यो पड़ियौ जूने साहित रो अणगिणती. बिण बरत्याँ. हम तम अंग्रेजी री कुदाल खाडा
खुणती"३
आ तोन क्रोड़ जनत्ता री बोली रख दीनी गिरवै-अडाणै. घर रा जाया घट्टी चाटै पेडा देवां पाडोसणां नैः लाजां मर जावो बोलण में आपाणौ गौरव-हीर मरयौ, घर री खांड कड़कड़ी जाणी चोरी रै गुड़ से मुंह
भरयो"५
फावंस ग्रीयर्सन रवि टैसीटोरी जो कर उजियालो. महत्त बतायो पण बीत्यो सईको नई जाण्यो धोलो कालो: बीजी भाषावां सिर उठायने पायी मान्यता धींगाणै. बोलै जिणरा बोर बिकै अणबोल्यां रतन पड़या
छांन""४
ललकार रेई मायड़ भासा क्यं दूध लजावो थे म्हारो, अमृत नै छोड़ धूल धाणी पीवण टूक्या पाणी खारौ: थे सिगलां स्यूं इधका सूरा मेधावी दानी रुखवाला, हौ भारत मां री शान सदाचारी कीरत धर
मूंछाला"६ घणी उन्नती ज्ञान-विज्ञान विविध भाषा अभ्यास करो, पण मत भूलो इण जामण नै सेवा कर उणायत नै हरौ; झंडो ऊंचौ मरु भाषा राजस्थान जाण नै मान करौ, रचना नानाविध प्रबल भाव मय भारती माँ भंडार
भरौ"७
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