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युगप्रधान सद्गुरु स्मृति गीत
हम्पी के योगी कहां तुम गये हो हमें आत्म दर्शन कराते-कराते ॥
क्रिया जड़ बना जो तीर्थंप का शासन मार्ग से कोशों भटक के विपथग उन्हें राह सम्यक् दिखाने के हेतु हुए अवतर्ण हे युग के प्रवर्तक
करी दीर्घ साधना गिरि कन्दरा में आत्मा की ज्योति जगाते जगाते || १||
ज्ञाता द्रष्टा महाव्रत संयुत भव भव में साधन किया संयमरत लब्धि सिद्धयादि अतिशय धारी रहे जिनके चरणों में देवेन्द्रादि भी नत
तपःपूत साधन प्रयोगी
नहाते-नहाते ||२||
इन्द्रिय मनका भावात्म निगृह नहीं साम्प्रदायिक भेदादि आग्रह अध्यात्म ज्ञान की कुंजी के धारक कर्मक्षयार्थ किया था अभिग्रह कठिन तप ध्यानादि में रत अहर्निश प्रेम की गंगा वहाते वहाते ||३||
केवल
शान्त-सुधारस
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पद
सीमंधर प्रभु युगप्रवर क्षयोपशम से गहन ज्ञान संपद गुरुराज जिनदत्त आदि से प्रेरित तेरा संभाल मंत्रेक सुविशद
आत्मिक प्रसादि लगे वोटने जो अतिशय वाणी सुनाते-सुनाते ॥४॥
न सोचा था इतनी जल्दी करोगे महाविदेह जाने की तैयारी पंचमकाल お हम हैं अभागे पाया न तुमको हे आत्म-विहारी समता से कष्ट सहे आत्मानंदी विदेही गुणों में समाते समाते ||५||
बनो हमारे सहायक प्रभु तुम अनंत गुणों का अंश पावें हम कृपालु तुम्हारी कृपा जो रही है। अनंत आशीर्वच यद्यपि अपात्र हम
निकालो 'भंवर' से नैया हमारी समकित पतवार दो ज्यों पार पाते ||६||
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