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श्री चम्पापुरी मण्डन वासुपूज्य
जिन स्तवन श्री वासपूज्य जिनेन्द्र भेटो, चंपानगर मझार रे । वसपूज्य नंदन त्रिजगवंदन, जाया सुतसुखकार रे ॥श्री012 च्यवन जन्म दीक्षा कल्याणक केवल अतिहि उदार रे । निर्वाण मोक्ष हुए वहाँ से, शिवरमणी भरतार रे ||श्री०||२ सत्तर धनुष की काय शोभित, लक्ष बहुत्तर आयुरे । महिष लंछन सेवता पद कुमर वर यक्षराय रे ॥श्री०।३ रक्त वर्ण शरीर सुन्दर, चण्डा शासन देवि रे । सम्यक्त व प्राप्ति बाद त.जे, भवे सिद्धिजेह रे ||श्री०॥४ घासठ थे गणधर प्रभु के, सिद्धि हो गए सर्व रे । 'भंवर' चम्पानगर भेट्या ज्ञान पंचमीपर्व रे ॥श्री०५
मणिधारी दादा श्री जिनचन्द्र
सूरि स्तवन
शान्ति जिन स्तवन शान्ति दरस मन मायो री, सब सुख कन्द । सोलम जिनवर विश्वसेन नृप अंगज आप कहायो री,
अचिरानन्द ||१|| गर्भ स्थित प्रभु मारि निवारी हस्तिनागपुर रायो री,
त्रिभुवन बंध ||२|| चक्री पंचम प्रबल पुण्यधर जिन अरिहंत कहायो री,
काटे कर्म फंद ||३|| समेत-शिखर गिरि मोक्ष सिधाये जय जय सब मिल गायोरी,
चौसठ इंद्र ||४|| चैत्य प्रतिष्ठा देशनोक में नव्योद्धार करायो री,
मिल सह संघ ||५|| सुख हित मोक्ष कार कहो प्रभुजी भव्य भक्ति चित्त चायो री.
मिटे सब द्वन्द ।'६|| दो हजार अठाइस वर्षे, ज्येष्ठ शुक्ल दस वारो री,
गुरु अमित आनन्द ||७|| तीर्थ कैलाश सह शिखर प्रतिष्ठा दंड ध्वजा लहरायो री.
दत्त कुशल मुणिंद |||| 'भंवर' कहे प्रतपो चिर काले संघ श्रेय कल्याणो री,
जब लग रवि चंद ||९||
सुगुरु सुनो अरदास. काटो भव पास, दादा मणिधारी.
आये हम शरण तुम्हारी || देल्हण माता कुक्षी जाये, रासल पितु घर हुलराये । विक्रमपुर मरुधर में लीन अवतारी |आये||१|| बारह सौ में कम तीन बरस, जन्मे. दीक्षा वैराग्य सुरस । षटवर्षायु में जिनदत्त पास में धारी |आये०।२।। आठ वर्ष के आचारज, पद पाये प्रतिमा के धारक । चौदह वर्षे पद युग प्रधान सुखकारी |आये॥३।। श्रीमाल मंत्रिदल ओसवंश, प्रतिबोधा जीते बादि वृद। करि बिम्ब प्रतिष्ठा और जिनालय भारी |आये||४|| दिल्लीपति मदनपालराजा, बन भक्त सुजस डंका वाजा । कुलचंद्रादिक पर कीनी कृपा अपारी |आये||५|| बारह तेवीसे स्वर्ग गति, पाये दिल्ली में शुद्ध मती। अल्पायु में कर शासन सेवा भारी |आये।६।। गुरु सम्यग दर्शन के दाता. तुम ही हो मात तात भ्राता। आत्मा के उद्धारक तुम जय कारी |आये।७।। दादा दूजा महरोली में, पूजे सब जन रंग रोली में। शासन उन्नति करो 'मवर' कहे बलिहारी |आये|८||
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