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क्षणिकाएँ
नम्रता
आत्मा का अस्तित्व
बाँस सहज ही अकड़ा रहता फल-युक्त आम्र अधिक झुकता वह समूल काटा जाता
यह
क्या है आत्मा? वह दृश्य नहीं फिर भी बतलाआ कथ्य नहीं अव्यक्त सही अभिव्यक्ति क्या? अनुभूति करो। वह तुरंत उठा पत्थर मारा पीड़ा होती है कहाँ है, वह दिखलाओ सही उत्तर पाया अनुभूति यही ।
सिंचित हो सेवा पाता. सेवा देता शोभा लेता।
छाया
देखती हो दर्पण में किन्तु उसमें तुम नहीं स्वदेह में हो स्थित
प्रतिक्रमण
जीवन की पाटी पर जो गलत लिखा उसे मिटा दो भविष्य में सतर्क रहो यही तो है प्रतिक्रमण ।
छाया मात्र कहीं।
पर-स्त्री
त्याग
देह को अपना मानना देहाध्यास । उसे छोड़ जल-कमलवत् रहना त्याग ।
सूर्य महान है दर्शनीय-वन्दनीय पर ताकने योग्य नहीं परस्त्री पर दृष्टि पड़ी तद्वत् दृष्टि नीची करने की शिक्षा यही है पवित्रता की रक्षा।
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