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खरतरगच्छ प्रशस्ति
[भाषा : संस्कृत ]
ढाटी-शान्तिनगर मण्डन जिन
प्रतिष्ठा स्तवन
सेवो सेवो हो धरि भाव शान्ति जिणंदा । भव जल तारण नाव, अचिरा के नंदा से०||
जिनदत्तं गुरु नत्वा सूरेश्च कुशल प्रभोः । सुविहितस्य मार्गस्य लिख्यतेऽयं प्रशस्तिका ।।१।। गच्छे खरतरे स्वच्छ क्षमाकल्याण पाठको । शुद्ध साधु क्रिया धारी विद्वज्जनै शिरोमणिः ॥ २॥ श्रमणार्या सुसंघोऽभूत् परम्परा सुविस्तृता। तपस्वी क्रिया पात्राश्च गणाधीश परम्परा ।।३।। सूरि पदं प्राप्तोयेन 5जीमगंज पुरेवरे । श्रीहरिसागराचार्य जैनधर्म प्रभावकः ॥ ४॥ पट्टोद्धारक सद्वक्ता सूरि आणंदसागरः । वीरपुत्राभिधानेन ख्याति माप्त सुभारते ॥ ५ ॥ सुमति सिन्धपाध्याय प? श्रीमणिसागरः । प्राप्त सूरि पदं येन शास्त्र वादि शिरोमणिः ॥ ६॥ सत्काव्य कला प्रतिभा-धारी कवीन्द्र सूरयः । रचितानि यैश्च सत्पूजा स्तव काव्यान्यनेकशः ॥ ७॥ श्री हेमेन्द्र गणाधीश तत्पट्ठोदय सागरः । द्वितीयो नुयोगाचार्यः कान्त्यब्धिः सुप्रभावकः ।। ८॥ संघ यात्रा सुसंस्थान मुपधानाद्यऽनेकशः। प्रतिष्ठा जिन बिम्बादि कारितानि महोत्सवः ॥ ९ ।। समायोजित संघेन जयपुरेहि सदुत्सवे । आषाढ़ षष्ठी दिवसे सूरि पदे द्रौ सद्गुरौ ||१०|| स्वनाम धन्य प्रतापीश्च सन्मुनि मोहनलालजित् । जिनयशः सूरि पट्टे जिनद्धि रत्नसूरयः ॥११॥ लब्धि केशर बुद्धिश्च पाठक-पन्यासौ-गणी। जयानन्द क्रियापात्र प्रवचने वाचस्पति ।।१२।। आगमज्ञा सद्विदुषी आर्या श्री सज्जनाभिधा। प्रवर्तिनी पदारूढ़ा कवयित्री सल्लेखिका ||१३|| भक्तया भंवरलालेन' गुंफितोऽयं प्रशस्तिका । शासनोन्नति कुर्वन्तु दीर्घायुषि गुरुत्तमा ।।१४।।
सोलम जिनवर पंचम चंक्री, हस्तिनापुर महाराज ||शांति।। गर्भ में आते मारि निवारी. सार्या भविक जन काज
|शांति||शासे०| विश्वसेन नप कंवर पदे में, वरस पच्चीस हजार ||शांति०| छः खण्ड साधी राज्य दीपाया. आत्मार्थ दीक्षाधार
__||शांशसे०| केवल पाकर भवि प्रतिबोधे, लाख वर्ष आयुधार शांoll समेतशिखर पर मोक्ष सिधाये, चक्रायुध गणधार
||शांo||३| | आत्म स्वभाव प्रत्यक्ष करण को, पुष्टालंबन हेतु ॥शांoll दाढी नगर में भव्य जिनालय, भवसागर का सेतु
|शां|8|| सेगा समति शीतल जिन उभय पक्ष में,त्रिरत्न प्राप्ति काज शां०|| सारे जगत के शांत परमाणु, आय मिले मानो आज
शां||शासेका शासन सुरी निर्वाणी गरुड़ यक्ष, दादाजिनदत्तगुरुराज ||शां०।। माघ सुदि पक्ष दशमी गुरु दिन, करी प्रतिष्ठा शुभ काज
शां ||से|| दो हजार सतरं में भट्टारक, जिन विजयेन्द्र महाराज शांoll सुव्रत-देवेन्द्र श्रीउपदेशात्.किया उत्तम काज ||शां०/७||से०|| पारख सुगनचंद लूणकरण पांची. देवी संपत स खकार |शांoll रूप विजय मुनिराज पधारे, संघ चतुर्विध मंगलवार
॥शां०८से|| क्षायिक दर्शन पाऊं प्रभू में, अथवा दो भक्तिकी पाज ||शां०|| चरण कमल में 'भंवर' रहे नित, चाहूं ननर सुर राज ||शां०||९||
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