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________________ श्री धनदेवी माताजी स्तवन [ भाषा : अपभ्रंश ] रयणकूट संट्ठाण सोहट्ठिय हंपी पुर वर, तुंगभद्द तड पुव्व काल किक्किध मनोहर थप्पिय सहजाणंद सुगुरु सिरि रायचंदास्सम, गुरु जिणयत्त णिव्वाण दीह जह जोत्ति अणोवम-१ माया सिरि धणलच्छि सिरोमणि निय चेयण रय, करुण सहावी लद्धि सिद्धि जह वयण अभिय मय, कच्छ पएसे संभराई उवएस सुवंसिय, सिवजी कंकुम बप्प माय कुच्छी सर हंसिय"२ सिसुवय पयड़िय अलव सत्ति पुग देवाधिट्ठिय, पुव्वजम्म कय पुण्ण का जिनयत्त सुदिठ्ठिय; सहस सत्त मुणि रुद्द भवे जिण धम्म पइट्टिय, सेट्ठि सआ भंतीय अभय माउलहर चिठ्ठिय"३ श्री महिमाप्रमसागर प्रशस्ति [ भाषा : अपभ्रंश ] कछ भुज निव खंगार राय बालत्तण भत्तह. आमंतिय सम्माण सहिय खलु विम्हिय पत्तहः चोर चरड़ भय दूर करिय वच्छल गुणोअय, पाणिग्गहणे कन्नदाण खंगार सयं किय"४ जय महिमप्पह समण मउड़ जय ललिय चंदप्पह । आदरिय संजम रयणत्तय आराहण सुविहिय पह॥ पहु पासनाह कल्लाण तित्थ संठिय दुइ वच्छर । सक्किय पाइय वागरण साहित्त कव्व अज्झयण सुहकर ||१|| दंसिय सुहणे सरल दिणे पयडिय निय देहइ. भद्द गुरु चाउमास ठिय महालच्छी गेहइ : ऊन पावागिरि तित्थ पत्त पमुइय मत्तिब्भर, पत्त बीह गिह चत्त बिक्कपुर सरण मुर्ण सर"५ नाण सरोवर ण्हवण सयय अपमत्त चारित्त रय। महोवज्झाय पय हेउ समयसुंदर मह पबंधकय ।। तित्थ जत्त विहरिय कमेण कलिकत्ता पउधारिय । पवयण पभाव बोहिय बहुल बुह सुपसंसह कारिय ॥२॥ फरसिय अय पारसमणि गुरु कंचण परिवत्तिय, निय नाणेण वास वुट्टि किय संसय विरहिय: लद्धि-सिद्धि सुपमाव विरल नह गइ नाणाविह, मरण समाहि करण कज्ज जीवइ पड़िबोहिय"६ हीराउत दफतरिय वंस अकलुस हीरग सम । निम्मल सुदिढ चरित्त वयण पालग गुण अणुवम || अज्झत्ततत्त सज्झाय झाण अणदिण अज्जोवउ । गुण मणि संगह सील अपमत्त गुणठाण आरोहउ ||३|| जीयजसा अज्जा रयण सुवियक्खण मंडलु । भद्द सहाबी माय कुच्छि -सर जुग मुणि हंसस । तणया अगर जसु कित्तिधर पुहविय तल सुपसिद्धउ। जयउ सुचिर सहबप्प छत्त 'भमर' हवउ समिद्धउ ||४|| [ २०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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