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________________ प्रतिमा थापी तेणइ ठामै. इंद्रइ भविक हित कामइ जी। हिवश्री पास सुखे विचरंता, अबोह जीवां ऊधरतांजी ||१६||प०॥ सउ वरसां सीम पाली काया. समेतशिखर जिणरायाजी । श्रावण सुदि अष्टमी शिव पहुँता. तेतीस मुनि साथि हुंताजी ॥१७॥०॥ इण परि पंच कल्याणक गाया, अहिंधत्ता जात आया जी। पुण्यै नर भव सफला पाया, पातक दूरि पुलायाजी ॥१८|पon ढाल ३-राग मारणी चौरासी दिन लगि हिव चित्त में हो, काय बोसराय मौन कीध विहरता प्रभु सिवपुरी नै कन्है रे, बड़तल काउसग्ग लीध ॥१०॥ प्रगट विराजे हो अहिछत्त पासजी हो. गुण गावं मन उद्यरंग ।। प्र०॥ आंकणी॥ आदि सागर सरवर नै आगले होमेरुगिरि जेम अडग्ग । कमठ सठ तापस नो जीव छै तिको हो, मेघमाली करइ उवसग्ग ||११|| प्र०॥ वायु विकुर्वी झड़ लागौ वरसवा हो. मूसलधार प्रमाण । प्रभु नासा सीम पांणी ऊंचो चढ्यो हो. धरणेन्द्र आयो सावधान ॥१२॥ प्र० ।। माथै प्रभु नै अहि छत्र मांडीयो हो. ऊंचा लिया आणी भक्ति। बत्तीस बद्ध नाटक कर पद्मावती हो. 'नाचे नवी नवी करी सक्ति ॥ १३ ॥ प्र०॥ समता दमता रस मांहि झीलता हो,ध्यावतां शुक्कल ध्यान । चैत्र किसन दिन चउथि नै उपनो हो, निरमल केवलज्ञान ||१७||प्र०|| ढाल ४-सुणि बहिनी एहनो ॥ कलश ॥ संवत गुण रस मुनि धराये (१७६३) ज्येष्ठ पहिले मास ए। कृष्ण पक्षइ प्रथम पडिवा मनहपूरी आस ए॥ दयातिलक वाचक भाव भत्तइ आय अहिछत्तइ मनगमइ । नित्यविजय जंपइ पास जिणवर सेव मुझ मन में गमे ।।१९।। इति अहिधता पार्श्वनाथ वृद्धस्तवनम् । सं० १७८५ ॥ अहिछत्तौ पारसनाथ कीधौ, नाम यथारथ दीधोजी अहिछत्ता नयरीय वसाई. धरणेन्द्र शोभ बधाईजी ॥१५|| परगट अहिछत्तोजी परसै. मन वंछित तसु सरिस्यैजी ॥ १० ॥ आगरा के लोढा कुंअरपाल सोनपाल के संघ वर्णन रास में खरतरगच्छीय कवि विनयसागर ने कम्पिलपुर यात्रा के अनन्तर अहिच्छत्ता यात्रा का उल्लेख इस प्रकार किया है अहिच्छत्तइ आवी करी, वधा श्री पास जिणंद रे। [ २०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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